किताब- ख़िलाफ़त ओ मुलूकिय्यत
लेखक- मौलाना अबुल आला मौदूदी
देवनागरी लिप्यंतरण- फ़रीद अहमद
अध्याय -2
भाग-1
इस्लाम के उसूले हुक्मरानी
पिछले बाब में कुरआन मजीद की सियासी तालीमात बयान की गई हैं, नबी (स०) का काम, उन्ही को अमली जामा पहनाना था। आप की रहनुमाई में ज़ुहूर-ए-इस्लाम
के साथ ही जो मुस्लिम मुआशरा वुजूद में आया, और फिर हिज़रत के बाद सियासी ताक़त
हासिल कर के जिस रियासत की शक्ल उसने इख्तियार की, उस की बिना इन ही तालीमात पर रखी
गई थी। इस निजाम-ए-हुकूमत की इम्तियाज़ी खुसूसियत, इसे हर दूसरे निजाम-ए-हुकूमत से
मुतमय्यज करती हैं, हस्ब-ए-ज़ेल थीं :
1-
कानून-ए-खुदावन्दी की बालातरी
इस रियासत
का अव्वलीन बुनियादी काइदा यह था कह हाकिमिय्यत सिर्फ अल्लाह ता`ला की है, और अहल-ए-इमान
की हुकूमत दरअस्ल “खिलाफत” है जिसे मुतलक़-उल-'इनानी के साथ काम करने का हक नहीं है, बल्कि उसको लाज़मन् उस
कानून-ए-खुदावन्दी के तहत रह कर ही काम करना चाहिए जिसका माख़ुज़ खुदा की किताब और उसके रसूल
की सुन्नत है। कुरआन मजीद में इस काइदे को जिन आयत में बयान किया गया है उन्हें हम पिछले
बाब में नक़ल कर चुके हैं । खास तौर पर आयत-ए-ज़ेल इस मामले में बिलकुल वाज़ह हैं-
अल निसा:59, 64,65,80,105, अल माइदा : 44,45,47, अल अराफ : 3, युसूफ: 40, अल
नूर: 54,55 अल अह्जाब : 36, अल हशर: 7 ।
नबी (स०) ने भी अपने मुत'अद्दिद इरशादात में इस अस्लुल-उसूल को पूरी सराहत के साथ बयान फरमाया है :
“तुम पर लाजिम है किताब अल्लाह की पैरवी। जिस चीज को उसने हलाल किया है उसे हलाल करो, और जिसे उसने हराम किया है उसे हराम करो।” [1]
“अल्लाह ने कुछ फ़राइज़ मुक़र्रर किये हैं, उन्हें ज़ाया न करो कुछ हुर्मतें मुक़र्रर की हैं, उन्हें न तोड़ों। कुछ हुदूद मुक़र्रर की हैं, उनसे तज़ावुज़ न करो। और कुछ चीजों के बारे में सुकूत फ़रमाया है बगैर उसके कह उसे निस्यान ला`हक हुआ हो, उनकी खोज में न पड़ो।” [2]
“जिसने किताब अल्लाह की पैरवी की वो न दुनिया में गुमराह होगा और न आखिरत में बदबख्त।”[3]
“ मैंने तुम्हारे अन्दर दो चीजें छोड़ी हैं जिन्हें अगर तुम थामे रहो तो कभी गुमराह ना होगे, अल्लाह की किताब और उसके रसूल की सुन्नत।” [4]
“जिस चीज का मैंने तुम को हुक्म दिया है उसे इख़्तियार कर लो और जिस चीज से रोका है उस से रुक जाओ।” [5]
2-
अदल बैनल-नास
दूसरा काइदा जिस पर इस रियासत की बुनियाद
रखी गई थी, यह था कह कुरआन व सुन्नत का दिया हुआ कानून सबके लिए यकसा है और उसको
मुमलिकत के अदना तरीन आदमी से लेकर मुमलिकत के सरबराह तक सब पर यकसा नाफ़िज़ होना
चाहिए। किसी के लिए भी इसमें इम्तियाज़ी सुलूक की कोई गुंजाइश नहीं है। कुरआन मजीद में अल्लाह ता`ला
अपने नबी (स०) को यह ऐलान करने की हिदायत फरमाता है कह –
“और मुझे हुक्म दिया गया है कह
तुम्हारे दरमियान अदल करूँ।” (अल शूरा :15)
यानी मैं बे-लाग इन्साफ पसंदी इख्तियार
करने पर मामूर हूँ। मेरा यह काम नहीं है कह किसी के हक में और किसी के खिलाफ तअस्सुब बरतूं । मेरा सब इंसानों से यकसा
ताल्लुक है, और वो है अदल व इन्साफ का ताल्लुक। हक जिस के साथ हो मैं उसका
साथी हूँ और हक जिसके खिलाफ हो मैं उसका मुखालिफ हूँ। मेरे दीन में किसी के लिए भी
कोई इम्तियाज़ नहीं है। अपने और गैर, बड़े और छोटे, शरीफ और कमीन के लिए अलग अलग
हुकूक नहीं हैं। जो कुच्छ हक है वो सबके लिए हक है। जो गुनाह है वो सबके लिए हुनाह है। जो हराम है वो सब के लिए हराम
है। जो हलाल है वो सब के लिए हलाल है ।जो फ़र्ज़ है वो सब के लिए फ़र्ज़ है। मेरी अपनी ज़ात भी कानून-ए-खुदावन्दी
की इस हमागीरी से मुतशना नहीं। नबी (स०) खुद इस काइदे को यूँ बयान फरमाते हैं –
“ तुमसे पहले जो उम्मातें गुजरी हैं वो इसी लिए तबाह हो गईं कह वह लोग कमतर दर्ज़े के मुजरिमों को कानून के मुताबिक़ सज़ा देते थे और ऊँचे दर्ज़े वालों को छोड़ देते थे। क़सम है उस ज़ात की जिसके हाथ में मुहम्मद (स०) की जान है, अगर मुहम्मद (स०) की बेटी फातिमा (रजि०) भी चोरी करती तो मैं ज़रूर उसके हाथ काट देता।” [6]
हज़रात उमर (रजि०) बयान करते हैं –
मैंने खुद रसूल अल्लाह सल्लाहूअलेय्हीवास्स्लम को अपनी ज़ात से बदला दते देखा है।” [7]
3-
मुसावात बैनल मुस्लिमीन
इसी काइदे
के फर`अ में यह तीसरा काइदा है जो इस रियासत के मुसल्लामात में से था कह तमाम
मुसलमानों के हुकूक बिला-लिहाज़ रंग व नस्ल व ज़बान व वतन बिलकुल बराबर हैं। किसी फर्द, गिरोह, तबके या
नस्ल व कौम इस रियासत के हुकूक में न इम्तियाज़ी हुकूक हासिल हो सकते हैं और न किसी
की हैसियत किसी दूसरे के मुकाबले में फर ओ तर करार पा सकती है। कुरआन मजीद में अल्लाह ताला
का इरशाद है –
“ लोगों !
हमने तुमको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और तुम्हें क़बीलों और कौमों में तकसीम
किया ताकि तुम एक दुसरे को पहचानों। दरहकीकत अल्लाह के नज़दीक सबसे जयादा इज्ज़त वाला वह है जो
सबसे ज्यादा मुत्तकी है।”
नबी (स०)
का हस्ब-ए-ज़ेल इरशादात इस काइदे की सराहत करते हैं :
“ मुसलमान भाई भाई हैं , किसी को किसी पर फजीलत नहीं मगर तक़वे की बिना पर।” [9]
“ लोगों, सुन लो, तुम्हारा रब एक है।अरबी को अजमी पर या अजमी को अरबी पर कोई फजीलत नहीं, न काले को गोरे पर या गोरे को काले पर कोई फजीलत नहीं है। मगर तकवे के लिहाज़ से।” [10]
जिसने शाहदत दी कह अल्लाह के सिवा कोई खुदा नहीं, और हमारे किबले की तरफ रुख किया और हमारी तरह नमाज़ पढी और हमारा ज़बीहा खाया वह मुसलमान है। इस के हुकूक वोही हैं जो मुसलामानों के हुकूक हैं और उस पर फ़राइज़ वोही हैं जो मुसलमान के फ़राइज़ हैं।” [11]
“ मोमिनों के खून एक दुसरे के बराबर हैं, वह दूसरों के मुकाबले में एक ही हैं, और उनका एक अदना आदमी भी उनकी तरफ से ज़िम्मेदारी ले सकता है।” [12]
“मुसलमानों पर जिजया आ इद नहीं किया जा सकता।” [13]
4-
हुकूमत की ज़िम्मेदारी व जवाबदही
चौथा अहम काइदा जिस पर ये रियासत
काइम हुई थी, यह था कह हुकूमत और उसके इख्तियारात और अमवाल, खुदा और मुसलामानों की
अमानत हैं जिन्हें खुदातरस, ईमानदार और आदिल लोगों के सुपुर्द किया जाना चाहिए। इस अमानत में किसी शख्स को मन
माने तरीके पर या नफसानी अगराज़ के लिए तसर्रुफ़ करने का हक नहीं हैं। और जिन लोगों के सुपुर्द ये
अमानत हो वह इस के लिए जवाबदह हैं। कुरआन मजीद में अल्लाह ता`ला का इरशाद है –
“ अल्लाह तुम को हुक्म देता है कह अमानातें अहल-ए-अमानत को सुपुर्द कर दो और जब लोगों के दरमियान फैसला करो तो अदल के साथ करो। अल्लाह तुम्हें अच्छी नसीहत करता है। यकीनन् अल्लाह सब कुछ सुनने वाला और देखने वाला है।”
रसूल अल्लाह (स०) का इरशाद है –
“ खबरदार रहो, तुम में से हर एक राई है और हर एक अपनी रइय्यत के बारे में जवाबदह है। और मुसलामानों का सबसे बड़ा सरदार जो सब पर हुक्मरान हो, वो भी राई है और अपनी रइय्यत के बारे में जवाबदह।” [14]
“कोई हुक्मरान, जो मुसलामानों मे से
किसी रइय्यत के मामलात का सरबरा हो, अगर इस हालत में मरे कह वह उन पर धोका व खियानत
करने वाला था तो अल्लाह उस पर जन्नत हराम कर देगा।” [15]
“ कोई हाकिम जो मुसलामानों की हुकूमत का मंसब संभाले फिर असली जिम्मेदारियां अदा करने के लिए जान न लड़ाए और ख़ुलूस के साथ काम न करे वो मुसलमानों के साथ जन्नत में कतअन् न दाखिल होगा।” [16]
(नबी (स०) ने हज़रात अबुज़र से फरमाया ) ऐ अबुज़र, तुम कमज़ोर आदमी हो और हुकूमत का मंसब एक अमानत है। क़यामत के रोज़ वह रुसवाई और नदामत का मुअज्ज़ब होगा सिवाए उस शख्स के जो हक का पूरा पूरा लिहाज़ करे और जो ज़िम्मेदारी उस पर आइद होती है उसे ठीक ठीक अदा करे।” [17]
“किसी हाकिम का अपनी राइय्यत में तिजारत करना बदतरीन खियानत है।” [18]
“ जो शख्स हमारी हुकूमत के किसी मंसब पर हो वो अगर बीवी न रखता हो शादी कर ले, अगर खादिम न रखता हो तो एक खादिम हासिल कर ले, अगर घर न रखता हो तो एक घर ले ले, अगर सवारी न रखता हो तो एक सवारी ले ले। इससे आगे जो शख्स कदम बढ़ाता है वह खाइन है या चोर।”[19]
हज़रत अबुबकर सिद्दीक (रजि०) फरमाते
हैं –
“जो शख्स हुक्मरान हो उसको सबसे ज्याद भारी हिसाब देना होगा और वह सबसे ज्यादा सख्त अज़ाब के खतरे में मुब्तिला होगा, और जो हुक्मरान न हो उस को हल्का हिसाब देना होगा और उसके लिए हल्के हिसाब का ख़तरा है, क्यूँ कह हुक्काम के लिए सबसे बढ़कर इस बात का मुवाके हैं कह उनके हाथों मुसलामानों पर ज़ुल्म हुआ, और जो मुसलामानों पर ज़ुल्म करे वो खुदा से गद्दारी करता है।”[20]
हज़रात उमर (रजि०)
कहते हैं-
“ दरिया फरात के किनारे एक बकरी का बच्चा भी ज़ाया हो जाए तो मुझ्र डर लगता है कह अल्लाह मुख से बाज-पुर्स करेगा।” [21]
5-
शूरा
इस रियासत
का पांचवां अहम काइदा यह था कह बारा-ए-रियासत मुसलामानों के मशवरे और उन की रजामंदी
से मुक़र्रर होना चाहिए, और उसे हुकूमत का निजाम भी मशवरे से चलाना चाहिए।कुरआन मजीद में इरशाद हुआ है –
हज़रात अली
(रजि०) का बयान है कह मैंने रसूल अल्लाह (स०) की खिदमत में अर्ज़ किया कह अगर आपके
बाद कोई ऐसा मामला पेश आये जिसके मुताल्लिक न कुरआन में कोई हुक्म हुआ और न आप से
हम ने कुछ सूना हो तो हम क्या करें ? फ़रमाया-
“ इस मामले में दीं की समझ रखने वाले आबिद लोगों से मशवरा करो और किसी ख़ास शख्स की राए पर फैसला न कर डालो।” [22]
हज़रत उमर
(रजि०) कहते हैं-
“जो शख्स मुसलामानों के मशवरे के बगैर अपनी या किसी और शख्स की अमारत के लिए दावत दे तो तुम्हारे लिए हलाल नहीं है कह उसे क़त्ल न करो।”[23]
एक और
रिवायत में हजरत उमर (रजि०) का यह कौल नक़ल हुआ है –
“मशवरे के बगैर कोई खिलाफत नहीं।” [24]
.................अध्याय-2, भाग-2
[1] कन्जुल अमाल बहवाला तबरानी व मुसनद अहमद, हदीस नं०907-966,
तबए दायरातुलमारूफ हैदराबाद 1955 ई०
[2] मश्कात बहवाला दारकतनी, बाब अल एत्साम बिलकिताबुल सुन्नह |
कन्जुल अमाल जि०1,ह०981-982
[3] मश्कात बहवाला राजीन , बाब मजकूर
[4] मश्कात बहवाला मुअत्ता, बाब मजकूर | कन्जुल अमाल
जि०1,ह०877-949-955-1001
[5] कन्जुल अमाल जि०1,ह०886
[6] बुखारी, किताबुल हुदूद ,अबवाब नं० 11-12
[7] किताबुल ख्राज़, इमाम युसूफ, सफ०116, अलमतबतुल सल्फिया,
मिस्र, तबए सानी 1352 हि०| मुसनद अबुदाऊद अल तयासी, हदीस नं० 55,तबए दायरतुल
मारूफ,हैदराबाद 1321 हि०
[8] तफसीर इब्ने कसीर ,बहवाला मुस्लिम व इब्ने माज़ा जि०4,
सफ०217, मतबूआ मुस्तुफा मुहम्मद, मिस्र, 1937 ई०
[9] इब्ने कसीर, बहवाला तिबरानी जि०4,सफ०217
[10] तफसीर रूहुल मानी, बहवाला अल बहिकी व इब्ने मर्दूया,
जि०26,सफ148, इदारा अल तबाअतुल मुनीरया, मिस्र
[11] बुखारी, किताबुल सलात, बाब 28
[12] अबू दाऊद, किताबुल रयात , बाब 11,किताबुल कासामा, बाब 10,14
[13] अबू दाऊद, किताबुल अमारा, बाब 34
[14] बुखारी, किताबुल एहकाम, बाब 1 |मुस्लिम, किताबुल अमारा, बाब
5
[15] बुखारी, किताबुल
एहकाम, बाब 8 | मुस्लिम, किताबुल ईमान,बाब 61| किताबुल अमारा, बाब 5
[16] मुस्लिम, किताबुल अमारा बाब 5
[17] कन्जुल अमाल, जि०6,ह०68-122
[18] कन्जुल अमाल, जि०6,ह०78
[19] कन्जुल अमाल, जि०6,ह०346
[20] कन्जुल अमाल, जि०5, ह०5-25
[21] कन्जुल अमाल, जि०5, ह०12-25
[22] तफसीर रूहुल मानी जि०25,स०42 | इस हदीस में आबिद लोगों से
मुराद वो लोग हैं जो खुदा की बंदगी करने वाले हों, आज़ाद व खुदमुख्तार बन कर मन
मानी कार्यवाहियां करने वाले ना हों | इस से ये मतलब लेना दुरुस्त नहीं है कह
मशवरा जिन लोगों से लिया जाए उन में सिर्फ एक इबादत गुज़री की सिफत देख ली जाए और
एहले अल् राय होने के लिए जो दुसरे औसाफ दरकार हैं उन्हें नजर अंदाज़ कर दिया जाए |
[23] कन्जुल अमाल जि०5,ह०77-25 हज़रात उम्र (रजि०) के इस कौल का
मतलब यह है कह किसी शख्स का इस्लामी हुकूमत पर जबरजस्ती मुसल्लत होने की कोशिश
करना एक संगीन जुर्म है और उम्मत को उसे बर्दाश्त नहीं करना चाहिए |
[24] कन्जुल अमाल, जि०5, हदीस 2345
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