किताब- ख़िलाफ़त ओ मुलूकिय्यत
लेखक- मौलाना अबुल आला मौदूदी
अध्याय -1
भाग-1
क़ुरआन की सियासी ता`लीमात
1- तसव्वुर-ए-काइनात
सियासत के मुतअल्लिक़
कुरआन का नज़रिया उसके असासी तसव्वुर-ए-काइनात पर मबनी है। जिसे निगाह में रखना इस नज़रिया को ठीक-ठीक समझने के लिए ज़रूरी है। सियासत के नुक्ता-ए- नज़र से अगर इस तसव्वुर-ए-काइनात
का जाइज़ा लिया जाए तो हस्ब-ज़ेल निकात हमारे सामने आते हैं :-
“कहो,
अल्लाह ही हर चीज का खालिक है और वो ही यकता है सबको मग्लूब करके रखने वाला सब पर
ग़ालिब है” (13 :16)
“ लोगों ! डरो अपने उस रब से जिसने तुमको एक जान से पैदा
किया और उससे उसका जोड़ा वजूद में लाया और उन दोनों से ब`कसरत मर्द व औरत दुनिया
में फैला दिए"। ( 4 : 1)
“क्या अल्लाह के सिवा कोई और खालिक है जो तुमको आसमान व ज़मीन से रिज्क देता हो
?” (35 :3)
“ क्या तुमने गौर किया ! ये नुत्फ़ा जो तुम टपकाते हो उससे बच्चा तुम पैदा करते
हो या उसके खालिक हम हैं ? ..... तुम ने
गौर किया , यह खेती जो तुम बोते हो उसे तुम उगाते हो या उसके उगाने वाले हम हैं ?
...... तुमने गौर किया, पानी जो तुम पीते हो उसे बादल से तुम बरसाते हो या उसके
बरसाने वाले हम हैं ?...... तुमने गौर किया, यह आग जो तुम सुलगाते हो उसके दरख्त
तुमने पैदा किये हैं या उनके पैदा करने वाले हम है ?” (56 : 72-85)
[ii] अपनी पैदाकर्दा इस
खल्क़ का मालिक, फरमारवा और मुदब्बिर व मुन्तज़िम भी अल्लाह ही है।
“ उसी का है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में हैं, और जो कुछ उनके दरमियान में है
और जो कुछ ज़मीन की तह में है।” (20 : 6)
“ सूरज और चाँद और तारों को उसने पैदा किया, सब उसके हुक्म से मुसख्खिर
हैं | खबरदार रहो उसी की खल्क़ है और उसी की हुक्मरानी है | बड़ा ब-बरकत वाला है अल्लाह सारी काइनात का
मालिक व परवरदिगार ।” (7 :54)
[iii] इस काइनात में (Sovereignty)
हाकिमिय्यत एक अल्लाह के सिवा न किसी की है, न हो सकती है,
और न किसी का यह हक है कि हाकिमिय्यत में उसका कोई हिस्सा हो ।
“क्या तुम नहीं जानते कि आसमानों और ज़मीन की बादशाही अल्लाह
की ही है |” (2 :107)
“और बादशाही में कोई उसका शरीक नहीं है ।” (25 :2)
“दुनिया और आखिरत में सारी तारीफ उसी के लिए है और हुक्म का
इख्तियार उसी को है और उसी की तरफ तुम पलटाए जाने वाले हो ।” (28 : 70)
“फ़ैसले का इख्तियार किसी को नहीं सिवाए अल्लाह के।” (6:57)
“बन्दों के लिए उसके सिवा कोई और वली व सरपरस्त नहीं, और वो
अपने हुक्म मे किसी को शरीक नहीं करता।” (18:26)
“वो कहते हैं कि हमारे इख्तियार में भी कुछ है ?”कहो !
इख्तियार सारा का सारा अल्लाह ही का है।” (3:154)
“अल्लाह ही के हाथ इख्तियार है पहले भी और बाद मैं भी।” (30 :4)
“आसमानों और ज़मीन की बादशाही उसी की है और सारे मामलात उसी
की तरफ रुजू किए जाते हैं |” (57 : 5)
“ क्या वो जो पैदा करता है उसकी तरह हो सकता है जो पैदा
नहीं करता है ? तुम हौश में नहीं आते |” ( 16 :17)
“क्या उन लोगों ने अल्लाह के कुछ ऐसे शरीक बना लिए हैं
जिन्होंने अल्लाह की तरह कुछ पैदा किया हो और उन पर तख़लीक का मामला मुश्तबा हो गया
हो ?” (13 :16)
“कहो ! कभी तुमने अपने ठहराए हुए शरीकों को देखा, जिन्हें
तुम अल्लाह के सिवा (रब की हैसियत से ) पुकारते हो ? मुझे दिखाओ उन्होंने ज़मीन में
क्या पैदा किया है , या आसमानों में उनकी कोई शिरक़त है ? ...... दर हकीकत अल्लाह
ही आसमानों और ज़मीन को ज़ाइल होने से रोके हुए है , और अगर वो ज़ाइल होने लगे तो
अल्लाह के बाद कोई दूसरा नहीं है जो उन्हें रोक सके।” (35 : 40-41)
[iv] हाकिमिय्यत की जुमला सिफ़ात और जुमला इख़्तियारात एक अल्लाह
ही में मर्कूज़ हैं। इस काइनात में कोई इस सिफ़ात व इख़्तियारात का हामिल सिरे से है ही नहीं। वोही सब पर ग़ालिब है । सब कुछ जानने वाला है । बे-ऐब व बे-खता है। सब का निगाहबान है | सब को
अमान देने वाला है | हमेशा ज़िंदा और और हर वक़्त बे-दार है | हर चीज पर क़ादिर है । सारे इख्तियारात उसी के हाथ
में हैं | हर शै चार व नाचारा उस की ताबे फरमान है । नफ़ा और ज़र सब उसके इख़्तियार
में है । कोई उसके सिवा और उसके इज़्न के बगैर न किसी को नफ़ा पहुँचा सकता है न नुक्सान। उसके इज़्न के बगैर कोई उसके
आगे सिफारिश तक नहीं कर सकता । वो जिससे चाहे मुवाख़ज़ा करे और जिसे चाहे माफ़ कर दें। उसके हुक्म पर नजर सानी करने
वाला कोई नहीं । वो किसी के सामने जवाबदेह नहीं और सब उसके सामने जवाबदेह हैं । उसका हुक्म नाफ़िज़ होकर रहता
है और कोई उसके हुक्म को टालने की कुदरत नहीं रखता। हाकिमिय्यत की यह
तमाम सिफ़ात सिर्फ अल्लाह ही के लिए मखसूस हैं और इन में कोई उसका शरीक नहीं है ।
“वो ही अपने बन्दों पर गलबा रखने वाला है और वो ही दाना और
हर चीज से ब-ख़बर है ।” (6 :18)
“पौशीदा और ज़ाहिर सब चीजों का जानने वाला , बुज़ुर्ग और
बालातर रहने वाला |” (13 : 9)
“हमेशा ज़िंदा, अपने बल पर आप क़ायम, ना उसको ऊंग आये ना नींद
ला-हक हो, आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है सब उसी का है , कौन है जो उसकी इज़ाज़त के
बगैर उसके पास सिफारिश करे ? जो कुछ लोगों के सामने है वो जानता है और जो कुछ उनसे
ओझल है उससे भी वो वाक़िफ है ।” ( 2 : 255)
“बड़ा बा-बरकत है वो जिसके हाथ में बादशाही है और वो हर चीज
पर क़ादिर है।” (67 : 1)
“ जिसके हाथ में हर चीज का इख्तियार है और उसी की तरफ तुम
पलटाए जाने वाले हो ।” ( 36 :83)
“आसमानों और ज़मीन के सब रहने वाले चार व ना-चारा उसी के ताबे
फरमान हैं ।” (3: 83)
“ताक़त बिलकुल उसी के हाथ में है, वो सब कुछ सुनने वाला और
जानने वाला है।” (10 : 65)
“कहो, अगर अल्लाह तुम्हे नुक्सान पहुँचाना चाहे तो कौन उस
से तुम्हे कुछ भी बचा सकता है ? या अगर वो तुम्हे नफ़ा पहुँचाना चाहे (तो कौन उसे
रोक सकता है।” (48 : 11)
“अगर अल्लाह तुझे ज़र्र पहुंचाए तो उसे दूर करने वाला खुद
अल्लाह ही के सिवा कोई नहीं है। और अगर वो तेरे साथ भलाई करना चाहे तो उसके फज़ल को फैर
देने वाला कोई नहीं | अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है फज़ल फरमाता है और वो बख्शने
वाला मेहरबान है।” (10 :107)
“तुम ख्वाह अपने दिल की बात ज़ाहिर करो या छुपाओ, अल्लाह
उसका मुहास्बा तुमसे कर लेगा, फिर जिसे चाहे वो माफ़ करे और जिसे चाहे सज़ा दे,
अल्लाह हर चीज पर क़ादिर है ।” (2: 284)
“ कमाल दर्ज़े का देखने वाला और सुनने वाला, उसके सिवा कोई
बन्दों का वली व सरपरस्त नहीं, और वो अपने हुक्म में किसी को शरीक नहीं करता।” (18 : 26)
“कहो, मुझे कोई अल्लाह से बचा नहीं सकता और न उसके सिवा मैं
जाए पनाह पा सकता हूँ ।” (72 :22)
“वो पनाह देता है और उसके मुकाबले में पनाह नहीं दी जा सकती
।” (40 :88)
“बेशक अल्लाह जो कुछ चाहता है फ़ैसला करता है ।” ( 5 : 1)
“जो कुछ वो करता है उस पर किसी के सामने वो जवाबदेह नहीं है
और दूसरे सब जवाबदेह हैं ।” (21 : 23)
“उसके फरामीन को बदलने वाला कोई नहीं और उसके मुकाबले में कोई जाए पनाह नहीं पा सकता।” ( 18 : 27)
“कहो, खुदाया ! मुल्क के मालिक, तू जिसे चाहे मुल्क दे और
जिस से चाहे छीन ले, जिसे चाहे इज्ज़त दे और जिसे चाहे ज़लील कर दे, सारी भलाई तेरे
इख्तियार में है, तू हर चीज पर क़ादिर है ।” (3 :26)
“दर हकीकत ज़मीन अल्लाह की है, अपने बन्दों में से जिसे
चाहता है उसका वारिस बनाता है |” (7 : 128)
जारी है......................अध्याय-1, भाग-2
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