किताब- ख़िलाफ़त ओ मुलूकिय्यत
लेखक- मौलाना अबुल आला मौदूदी
देवनागरी लिप्यंतरण- फ़रीद अहमद
अध्याय -4
भाग-3
खिलाफत-ए-राशिदा से मुलूकिय्यत तक
तीसरा यह कह इन में से बअज़ का किरदार ऐसा था कह उस दौर के
पाकीज़ा तरीन इस्लामी मुआशरे में इन जैसे लोगों को बुलंद मनासिब पर मुकर्रर करना
अच्छा असर पैदा न कर सकता था। मिसाल के तौर पर वलीद बिन उक्बा के मामले को लीजिए। यह साहब भी फ़तेह मक्का के बाद
इस्लाम लाने वालों में से थे। रसूल अल्लाह (स०) ने इन को बनि अल-मुस्तलिक के सदाक़त वुसूल
करने के लिए मामूर फरमाया। मगर यह इस कबीले के इलाके में पहुँच कर किसी वज़ह से डर गए
इन लोगों से मिले बगैर मदीने वापस जाकर उन्होंने यह रिपोर्ट दे दी कह बनि अल-मुस्तलिक
ने ज़कात देने से इंकार कर दिया और मुझे मार डालने पर तुल गए। रसूल अल्लाह (स०) इस पर
गज़बनाक हुए और आप (स०) ने उन के खिलाफ एक फौजी मुहिम रवाना कर दी। करीब था कह एक सख्त हादसा पेश
आ जाता, लेकिन बनि अल-मुस्तलिक को बर`वक़्त इल्म हो गया और उन्होंने मदीना हाज़िर
होकर अर्ज़ किया कह यह साहब तो हमारे पास आये ही नहीं, हम तो मुन्तजिर ही रहे कह
कोई हमसे ज़कात वुसूल करे। इस पर यह आयत नाजिल हुई –
इसके चंद साल बाद अबु बकर (रजि०) व उमर (रजि०) ने उनको फिर
खिदमत का मौका दिया, हजरत उमर (रजि०) के आखरी ज़माने में अल ज़जीरा के अरब इलाके पर
जहाँ बनि तगल्लुब रहते थे आमिल मुक़र्रर किये गए। [2] 25 हिजरी में उस छोटे से मंसब
से उठा कर हजरत उस्मान (रजि०) ने उनको हजरत सअद (रजि०) बिन अबि वकास की जगह कूफे
जैसे अहम और बड़े सूबे का गवर्नर बना दिया। वहाँ यह राज़ फाश हुआ कह शराब नौशी की आदि हैं, हत्ता के एक
रोज़ उन्होंने सुबह की नमाज़ चार रक्अत पढ़ा दी और फिर पलट कर लोगों से पूछा “ और
पढ़ाऊँ ?” [3] इस वाकिये की शिकायत मदीने तक
पहुंची और लोगों में इसका आम चर्चा होने लगा। आखिरकार हज़रत मसूर बिन मखरमा
और अब्दुल रहमान बिन अस्वद ने हजरत उस्मान (रजि०) के भांजे अब्दुलाह बिन अदि बिन
ख्यार से कहा कह तुम जाकर अपने मामू साहब से बात करो और उन्हें बताओ कह उसके भाई वलीद
बिन उक्बा के मामले में लोग उनके तर्ज़े अमल पर बहुत एतराज़ कर रहे हैं। उन्होंने जब इस मामले की तरफ
तवज्जो दिलाई और अर्ज़ किया कह वलीद पर हद जारी करना आपके लिए ज़रूरी है तो हजरत
उस्मान (रजि०) ने वादा फरमाया कह हम इस मामले में इंशा अल्लाह हक के मुताबिक़ फैसला
करेंगे। चुनांचह सहबा के जामा आम में वलीद पर
मुक़दमा कायम किया गया। हजरत उस्मान (रजि०) के अपने आज़ादकर्दा गुलाम ‘इमरान’ ने
गवाही दी कह वलीद ने शराब पी थी। एक दूसरे गवाह सअब बिन जसामा (या जुसामा बिन सअब) ने शहादत
दी कह वलीद ने उनके सामने शराब की कै की थी (इनके अलावा चार और गवाह अबु जैनब, अबु
मुर्राअ, ज़ुन्दुब बिन जुहैर अलजूदी और साद बिन मालिक अल अशाअरी भी इब्ने हज़र के
बयान के मुताबिक़ पेश हुए थे और उन्होंने भी जुर्म की तस्दीक की थी , तब हजरत
उस्मान (रजि०) ने हजरत अली (रजि०) को
हुक्म दिया कह वलीद पर हद कायम करें। हजरत अली (रजि०) ने हजरत अब्दुल्लाह बिन जाफर को उस काम पर
मामूर किया और उन्होंने वलीद को 40 कोड़े लगाए। [4]
[1] मुफस्सरीन
बलमामूम इस आयत की शाने नुजूल इसी वाकये को बयान करते हैं | मुलाहिजा हो तफसीर
इब्ने कसीर | इब्ने अब्दुल बर्र, अल इस्तियाब, जि०3, सफ० 603 | इब्ने तेमिया ने भी
तस्लीम किया है कह यह आयत वलीद के मामले में नाजिल हुई थी (मिन्हाजुल सुन्नातुल
नबुव्वा, जि० 3, सफ० 176 अलमतबुआ
अमीरियाह, मिस्र 1322 हि०
[2] तहजीबुल
तहजीब, जि०11, सफ०144 | उमदतुल कारी, जि० 16, सफ० 203 अदारातुल ताबतुल मुनीरियाह,
मिस्र
[3] अल
बदाया वल नहाया, जि०7, सफ०155 | अल इस्तियाब, जि० 2, सफ० 604 |
[4] बुखारी,
किताबुल मनाकिब, बाब मनाकिब उस्मान (रजि०) बिन अफ्फान | बाब हुजरतुल हब्शा |
मुस्लिम, किताबुल हुदूद्द, बाब हुदूद अल खमर | अबु दाऊद, किताबुल हुदूद, बाब
हुड्दोद अल खमर | इन अहदीस की तशरीह करते हुए मुहद्दसीन व फुकहा ने जो लिखा वो
दर्ज़ जैल है –
“ हाफ़िज़
इब्ने हज़र फतह उल बारी में लिखते हैं “ लोग जिस वज़ह से वलीद के मामले में कसरत से एतराजात
कर रहे थे वो यह थी कह हजरत उस्मान (रजि०) उस पर हद कायम नहीं कर रहे थे | और
दूसरी वज़ह यह थी कि सअद (रजि०) बिन अबि वकास को माजूल करके उनकी जगह वलीद को
मुकर्रर करना लोगों को पसंद न था | क्यूँकि हजरत सअद (रजि०) अशरह मुबशरह और अहले
शूरा में से थे | और उनके अन्दर इल्म व फज़ल और दीनदारी और सबकत इस्लाम की वो सिफात
मुज्तमे थीं जिन में से कोई चीज वलीद बिन उक्बा में न थीं ........... हजरत उस्मान
(रजि०) ने वलीद को इस लिए विलायत कूफा पर मुकर्रर किया था कह उस की काबिलयत उन पर
ज़ाहिर हुई थी और वो रिश्तेदारी का हक भी अदा करना चाहते थे | फिर जब उस की सीरत की
खराबी उन पर ज़ाहिर हुई तो उन्होंने उसे माजूल कर दिया, उस पर हद कायम करने में
उन्होंने ताखीर इस लिए की थी कह उसके खिलाफ जो लोग शहादत दे रह थे उनका हाल अच्छी
तरह मालूम हो जाए | फिर जब हकीकत हाल वजेह हो गई तो उन्होंने उस पर हद कायम करने
का हुक्म दे दिया” (फ़तह उल बारी, किताबुल मनाकिब, बाब मनाकिब उस्मान (रजि०)
एक दूसरे मुकाम पर इब्ने हज़र
लिखते हैं “ तहावी ने मुस्लिम की रिवायत को इस बिना पर कमज़ोर करार दिया है कह उसका
रावी अब्दुल्लाह अलदनाज़ जईफ था | मगर बेहकी ने उनकी इस राये इख्तिलाफ करते हुए
लिखा है कह यह सही हदीस है जिसे मुसानीद और सुनन् में लिया गया है | तिमिज़ी ने इस
रिवायत के मुतालिक इमाम बुखारी से पूछा तो उन्होंने उसे कवी करार दिया | और मुस्लिम ने भी उसे सही करार दिया है | इब्ने
अब्दुल बर्र ने कहा है कह यह हदीस इस बाब में सबसे ज्यादा मुअतबर है .......
अब्दुल्लाह अल दनाज़ को अबु जुरआ और निसाई ने सक्कह करार दिया है |” ( फतह उल बारी
किर्ताबुल हुदूद बाब अलज़र्ब बअल ज़रीद व
अलनआल)
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