किताब- ख़िलाफ़त ओ मुलूकिय्यत
लेखक- मौलाना अबुल आला मौदूदी
देवनागरी लिप्यंतरण- फ़रीद अहमद
अध्याय -4
भाग-4
खिलाफत-ए-राशिदा से मुलूकिय्यत तक
यह थे वो जिन की बिना पर हजरत उस्मान (रजि०) की यह पालिसी
लोगों के लिए और भी ज्यादा बेइत्मिनानी की मुअजब बन गई थी। खालीफा-ए-वक़्त अपने खानदान के आदमियों को पे दर
पे मुमालिकत के अहम तरीन मनासिब पर मामूर करने के बजाए खुद काफी वज़ह एतराज़ था। इस पर जब लोग यह देखते थे कह
आगे लाए भी जा रहे हैं तो इस तरह के अश्खास तो फितरी तौर पर उन की बेचैनी में और
ज्यादा इजाफा हो जाता था। इस सिलसिले में खुसूसियत के साथ दो चीजें ऐसी थीं जो बड़े दूर-रस और खतरनाक नताइज़ की हामिल साबित
हुईं।
एक यह कि हजरत उस्मान (रजि०) ने हजरत मुआविया (रजि०) को
मुसलसल बड़ी तवील मुद्दत तक एक ही सूबे की गवर्नरी पर मामूर किये रखा। वो हजरत उमर (रजि०) के ज़माने
में चार साल से दमिश्क की विलायत पर मामूर चले आ रहे थे। हजरत उस्मान (रजि०) ने अयला
से सरहदे रोम तक और अल-ज़जीरा से साहिल बहरे बैज तक का पूरा इलाका उनकी विलायत में
जामा करके अपने पूरे ज़माने खिलाफत (12 साल) में उनको इसी सूबे पर बर करार रखा। [1] यही चीज जिसका खामियाजा आखिर
कार हजरत अली को भुगतना पड़ा। शाम का यह सूबा उस वक़्त के इस्लामी सल्तनत की बड़ी अहम जंगी
हैसियत का इलाका था। इस के एक तरफ तमाम मशरिकी सूबे थे, और दूसरी तरफ तमाम
मगरिबी सूबे। बीच में वो इस तरह हाइल था कह अगर उस
का गवर्नर मरकज़ से मुन्हरिफ हो जाए तो मशरिकी सूबों को मगरिबी सूबों को बिल्लुल
काट सकता था। हजरत मुआविया (रजि०) इस सूबे की हुकूमत पर इतनी तवील मुद्दद तक रखे गए कह
उन्होंने यहाँ अपनी जड़ें पूरी जमा लीं। और वो मरकज़ के काबू में न रहे बल्कि मरकज़ उनके रहम-ओ-करम
पर मुनहसिर हो गया।
दूसरी चीज जो इसे जियादा फितना अंगेज साबित हुई वो खलीफ़ा के
सेकेट्री की अहम पोजीशन पर मरवान बिन हकम की मामूरी थी। इन साहब ने हजरत उस्मान
(रजि०) की नर्म मिजाजी और उनके अतमाद से फायदा उठा कर बहुत से काम ऐसे किए जिन की
ज़िम्मेदारी ला`मुहाला हजरत उस्मान (रजि०) पर पड़ी थी, हालाँकि उनकी इज़ाज़त और इल्म के
बगैर वो काम कर डाले जाते थे। अलावा बरीं यह साहब हजरत उस्मान (रजि०) और अकाबिर सहाबा के
बहामी खुशगवार ताल्लुकात को खराब करने की मुसलसल कोशिश करते रहे। ताकि खलीफ़ा बरहक अपने पुराने
रफीकों के बजाए इन को अपना ज्यादा खैरख्वाह और हामी समझने लगें।” [2] यही नहीं बल्कि मुतअदद मर्तबा
उन्होंने अस्हाबा (रजि०) के मजमे में ऐसी तहदीद आमेज़ तकरीरें कीं जिन्हें तुल्का
की जबान से सुन्ना साबिकीन -अव्वलीन के लिए मुश्किल ही काबिल-ए-बर्दाश्त हो सकता
था। इसी बिना पर दूसरे लोग तो दर किनार, खुद हजरत उस्मान (रजि०) की अहलिया
मोहतरमा हजरत नाईला भी यह राय रखती थीं कह हजरत उस्मान (रजि०) के लिए मुश्किलात
पैदा करने की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी मरवान पर आयद होती है। हत्ता के एक मर्तबा उन्होंने
अपने शौहर मोहतरम से साफ़ साफ़ कहा कह “ अगर आप मरवान के कहे पर चलेंगे तो आप को
क़त्ल करा कर छोड़ेगा। उस शख्स के अन्दर न अल्लाह की कदर है, न हैबत, न मोहब्बत।” [3]
[1] तबकात
इब्ने साद, जि०7,सफ०406 | अल इस्तियाब, जि०1, सफ० 253 | यह इलाका वह है जिस में
शाम, लिब्नान, उरदान और इसराइल की चार हुकूमतें शामिल हैं | इन चार हुकूमतों के
मजमुई हुदूद करीब करीब आज भी वो ही हैं जो अमीर मुआविया (रजि०) की गवर्नरी के औहद
में थे | हजरत उमर (रजि०) के ज़माने में इन इलाकों पर चार गवर्नर मुक़र्रर थे और
हजरत मुआविया (रजि०) उन में से एक थे | (मुलाहिजा हो यजीद बिन मुआविया अज़ इमाम
इब्ने तैमिया, सफ०34,35, इब्ने तैमिया एकेडमी, करांची |
[2] तबकात इब्ने साद, जि०5, सफ०36 | अब बदाया वल
निहाया, जि०8, सफ०259 |
[3] अल
तबरी, जि०3, सफ०396-397 | अलबदाया वल निहाया, जि०7, सफ० 172-173 |
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