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Khilafat o Mulukiyat 1-3/ ख़िलाफ़त ओ मुलूकिय्यत 1-3



किताब- ख़िलाफ़त ओ मुलूकिय्यत

लेखक- मौलाना अबुल आला मौदूदी

देवनागरी लिप्यंतरण- फ़रीद अहमद

 

अध्याय -1

भाग-3

अल्लाह की कानूनी हाकिमिय्यत

 

इन वज़ूह से कुरआन फ़ैसला करता है कह इताअत खालिसतन अल्लाह की और पैरवी उसी के कानून की होनी चाहिए इस को छोड़ कर दूसरों की, या अपनी खुवाहिशात-ए-नफ्स की पैरवी ममनू है :


“ऐ नबी ! हमने ये किताब हक के साथ तुम्हारी तरह नाजिल की है, पस तुम दीन को अल्लाह  के लिए खालिस कर के उसकी बंदगी करो खबरदार दीन खालिस अल्लाह ही के लिए है ” ( 39 : 2)


“ कहो ! मुझे हुक्म दिया गया है कह दीन को अल्लाह के लिए खालिस कर के उसकी बंदगी करूँ और मुझे हुक्म दिया गया है कह सबसे पहले सर इताअत झुका देने वाला मैं हूँ ” (39 : 11-12)


“ हमने हर उम्मत में एक रसूल भेजा कह अल्लाह की बंदगी करो और तागूत से इज्तिनाब करो [1]  (16 : 36)


“ उन को कोई हुक्म इस के सिवा नहीं दिया गया कह यकसू होकर अल्लाह की बंदगी करें, दीन को इस के लिए खालिस करते हुए” (98 : 5०)


“ पैरवी करो उस चीज की जो तुम्हारी तरफ नाजिल की गई है तुम्हारे रब की तरफ से और उसे छोड़ कर दूसरे सरपस्तों की पैरवी ना करो” (7 : 3)


  और अगर तूने उस इल्म के बाद जो तेरे पास आ चुका है उन की ख्वाहिशात की पैरवी की तो अल्लाह के मुकाबले में न तेरा कोई हामी होगा और न बचाने वाला |” (13 : 37)


  फिर हमने तुझको दीन के एक खास तरीके पर क़ायम कर दिया पसतू उसकी पैरवी कर और उन लोगों की ख्वाहिशात की पैरवी न कर जो इल्म नहीं रखते ” ( 45 : 18)

"... यह अल्लाह की बाँधी हुई हदें हैं, इनसे तजावुज़ न करो और जो अल्लाह की हुदूद से तजावुज़ करें वोही ज़ालिम हैं ” ( 2 : 229)


“ ......... यह अल्लाह की हदें हैं, और जो अल्लाह की हद से तजावुज़ करे उसने अपनी नफ्स पर ज़ुल्म किया ” ( 65: 1 )


“ ....... यह अल्लाह की हदें हैं और पाबंदी से इंकार करने वालों के लिए दर्द नाक सज़ा है ” ( 58 : 4 )


  नीज़ वो कहता है कह अल्लाह के हुक्म के खिलाफ जो हुक्म भी है न सिर्फ गलत और नाजायिज़ है बल्कि कुफ्र व ज़लालत और ज़ुल्म व फ़िस्क़ है  इस तरह का हर फ़ैसला जाहलियत का फ़ैसला है जिस का इंकार लाज्मन् ईमान है :


“ और जो अल्लाह के नाजिल कर्दा हुक्म के मुताबिक़ फ़ैसला न करें वोही काफिर हैं ” ( 5 : 44)

“ और जो अल्लाह के नाजिल कर्दा हुक्म के मुताबिक़ फैसला न करें वोही ज़ालिम  हैं ” ( 5 : 45)


“ और जो अल्लाह के नाजिल कर्दा हुक्म के मुताबिक़ फैसला न करें वोही फासिक  हैं ” ( 5 : 47)


“ क्या वह जाहलियत का फैसला चाहते हैं ? हालांकि यकीन रखने वालो के लिए अल्लाह से बेहतर फ़ैसला करने वाला कौन हो सकता है ” ( 5 : 50)


“ क्या तू ने नहीं देखा उन लोगों को जो दावा करते हैं कह वो ईमान लाए हैं उस किताब पर जो तेरी तरफ़ नाजिल की गई है और उन किताबों पर जो तुझ से पहले नाजिल की गुई थीं, और फिर चाहते हैं कह फ़ैसले के लिए अपना मामला तागूत के पास ले जाएँ, हालाँकि उन्हें उसका इंकार करने का हुक्म दिया गया था ? शैतान चाहता है कह उन्हें भटका कर गुमराही में दूर ले जाए ” ( 4 : 60)

                                                                                                                                   

जारी है......................अध्याय-1, भाग-4



[1]   हर वो हस्ती जो अल्लाह के मुकाबले में शरकशी करे और अल्लाह के सिवा जिस की बंदगी की जाए, ख्वाह बंदगी करने वाला उस की ज़बर से मजबूर हो कर उसकी बंदगी करे या अपनी रज़ा व रगबत से ऐसा करे, वह तागूत है, कतआ नजर उस से कह वो कोई इंसान हो या शैतान या बुत या और कोई चीज |”

(इब्ने ज़रीर अल तबरी, जामा अल बयान फी तफसीर उल कुरआन, जि० 3, सफ० 13, मतबूआ अल अमीरिया, मिस्र, 1324 हि०)

 

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