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Khilafat o Mulukiyat 1-2/ ख़िलाफ़त ओ मुलूकिय्यत 1-2


किताब- ख़िलाफ़त ओ मुलूकिय्यत

लेखक- मौलाना अबुल आला मौदूदी

देवनागरी लिप्यंतरण- फ़रीद अहमद

 

अध्याय -1

भाग-2

हाकिमिय्यत-ए-इलाहिया


काइनात के इसी तसव्वुर की बुनियाद पर कुरआन कहता है कह इंसानों का हकीकी फरमांरवा और हाकिम भी वो ही है जो काइनात का हाकिम व फरमांरवा है | इंसानी मामलात में भी हाकिमिय्यत का हक उसी को पहुंचता है और उसके सिवा कोई इंसानी या गैर इंसानी ताक़त बतौर खुद हुक्म देने और फैसला करने की मिजाज़ नहीं है अलबत्ता फर्क सिर्फ ये है कि निजाम-ए-काइनात  में तो सिर्फ अल्लाह की हाकिमिय्यत व फरमां रवाई अपने जौर पर आप कायम है जो किसी के एतराफ़ की मोहताज़ नहीं है, और खुद इंसान भी अपनी ज़िन्दगी के गैर इख्तियारी हिस्से में तबअन्न उस की हाकिमिय्यत व फरमां रवाई का इसी तरह मु`ती है जिस तरह एक ज़र्रे से लेकर कह-कशानी निजामों तक हर चीज उसकी मु`ती है , लेकिन इंसान की ज़िन्दगी के इख्तियारी हिस्से में वो अपनी हाकिमिय्यत को बजौर मुसल्लत नहीं करता बल्कि इल्हामी किताबों के ज़रिए से, जिनमे आखरी किताब यह कुरआन है, उन को दावत देता है कह शऊर व इरादा के साथ उस की हाकिमिय्यत तस्लीम और इता`अत इख्तियार करें इस मज़मून के मुख्तलिफ पहलुओं को कुरआन में बड़ी वजाहत के साथ बयान किया गया है

[i] यह कह काइनात का रब ही दर हकीकत इंसान का रब है और उसी की रबूबिय्यत तस्लीम की जानी चाहिए –


“ऐ नबी ! कहो, मेरी नमाज़ और मेरी कुर्बानी और मेरा जीना और मेरा मरना सब कुछ अल्लाह रब्बुलआलमीन के लिए है ...... कहो, क्या अल्लाह के सिवा मैं कोई और रब तलाश करूँ ? हालाँकि हर चीज का रब तो वोही है |” (6 : 164)

“दर हकीकत तुम्हारा रब अल्लाह है जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया” (7 : 54)

“ कहो, मैं पनाह मांगता हूँ इंसानों के रब, इंसानों के बादशाह, इंसानों के मा`बूद की” (114 : 1-3)


“ कहो, कौन तुमको आसमानों और ज़मीन से रिज्क देता है ? समाअत और बीनाई की कुव्वातें किस के इख़्तियार में हैं ? कौन बे-जान में से जानदार को और जानदार में से बेजान को निकालता है ? और कौन दुनिया का इंतिज़ाम चलता है ? वो ज़रूर कहेंगे कह अल्लाह कहो, फिर तुम डरते नहीं ? फिर तो वो अल्लाह ही तुम्हारा हकीकी रब है आखिर हक के बाद गुमराही के सिवा और क्या रह जाता है, तुम किधर फिराए जा रहे हो ?” (10 : 31-32)


[ii] यह कि हुक्म और फ़ैसले का हक अल्लाह के सिवा किसी को नही है, उसकी बंदगी इंसानों को करनी चाहिए  और यही सही तरीके कार है

“ तुम्हारे दरमियान जो इख्तिलाफ भी हुआ, उसका फ़ैसला करना अल्लाह का काम है” (42 : 10)

“ हुक्म अल्लाह के सिवा किसी के लिए नहीं है, उसका फरमान है कह तुम उसके सिवा किसी की बंदगी न करो, यही सही दीन है, मगर अक्सर लोग जानते नहीं हैं”  (12 : 40)


“ वो कहते हैं कह हमारा भी कुछ इख्तियार है ? कहो, इख्तियार सारा का सारा अल्लाह ही का है” (3 : 154)


[iii] यह कह हुक्म देना का हक अल्लाह को इस लिए है कह वोही खालिक है :

“ख़बरदार ! उसी की खल्क है और उसी का अम्र |” (7 : 54)


[iv] यह कह हुक्म देने का हक अल्लाह को इस लिए है कह वोही काइनात का बादशाह है:


“ चोर मर्द और चोर औरत के हाथ काट दो ....... क्या तुम नहीं जानते कह आसमानों और ज़मीन की बादशाही  अल्लाह ही के लिए है” (5 : 38-40)


[v] यह कह अल्लाह का हुक्म इस लिए बर`हक है, कह वोही हकीकत का इल्म रखता है और वोही सही रहनुमाई कर सकता है :


“ हो सकता है कह एक चीज तुम्हें नापसंद हो और वो तुम्हारे लिए बेहतर हो, और हो सकता है कह एक चीज तुम्हें पसंद हो और वो तुम्हारे लिए बुरी हो | अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते” ( 2 : 216)


  अल्लाह ही जानता है मुफ़सिद कौन है और मुस्लेह कौन ?” ( 2 : 220)


“ जो कुछ उनके सामने है उसे भी वो जानता है और जो कुछ उनसे ओझल है उस से भी वो बा-खबर है और उसके इल्म में से किसी चीज का वो अहाता नहीं कर सकते सिवाए उन चीजों का जिनका वो इल्म देना चाहे” (2 : 255)



“ और जब तुम औरतों को तलाक़ दो और वो अपनी इद्दत की मुद्दत को पहुंच जाएँ तो उन्हें (अपनी पसंद के ) शोहरों के साथ निकाह करने से न रोको ......... यह तुम्हारे लिए ज्यादा साइस्ता और पाकीज़ा तरीका है | अल्लाह जानता और तुम नहीं जानते |” ( 2 :232)

“ अल्लाह तुम्हारी औलाद के मामले में तुमको हिदायत देता है ................ तुम्हारे माँ-बाप और तुम्हारी औलाद में से कौन ब-लिहाज़-ए-नफ़ा तुमसे करीब तर है, उसको तुम नहीं जानते विरासत का हिस्सा अल्लाह ने मुक़र्रर कर दिया है, यकीनन्न अल्लाह सब कुछ जानता है और दाना है |” (4 : 11)


 “ वो तुमसे फतवा पूछते हैं कहो, अल्लाह कलालह के मामले में तुम्हें फतवा देता है ...... अल्लाह तुम्हारे लिए एहकाम की तौजीह करता है कह तुम भटक न जाओ और वो हर चीज का इल्म रखता है” ( 4 : 176)


“ अल्लाह की किताब में रिश्तेदार (दूसरों की बनिस्बत) एक दूसरे के जियादा हक़दार हैं, अल्लाह हर चीज का इल्म रखता है” ( 8 : 75)

“ सदकात तो फुकरा के लिए हैं ...... यह अल्लाह की तरफ से मुक़र्रर किया हुआ काइदा है और अल्लाह सब कुछ जानने वाला और दाना है” ( 9 : 60)


“ ऐ लोगों जो ईमान लाए हो , तुम्हारा गुलाम तुम्हारे पास इज़ाज़त लेकर आये .......... इस तरह अल्लाह तुम्हें अहकाम खोल कर बताता है और वो सब कुछ जानने वाला और दाना है” (24 :58-59)


“ ऐ लोगों जो ईमान लाए हो, जो मोमिन औरतें हिजरत करके तुम्हारे पास आयें उनका इम्तिहान लो............. यह अल्लाह का हुक्म है, वो तुम्हारे मामलात में फैसला करता है और अल्लाह सब कुछ जानने वाला और दाना है ” 

( 60: 10)


जारी है......................अध्याय-1, भाग-3


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