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Khilafat o Mulukiyat 1-4/ ख़िलाफ़त ओ मुलूकिय्यत 1-4

 


किताब- ख़िलाफ़त ओ मुलूकिय्यत

लेखक- मौलाना अबुल आला मौदूदी

देवनागरी लिप्यंतरण- फ़रीद अहमद

 

अध्याय -1

भाग-4

रसूल की हैसियत

खुदा का वो कानून, जिस की पैरवी का ऊपर की आयतों में हुक्म दिया गया है, इंसान तक उस के पहुँचने का ज़रिया सिर्फ खुदा का रसूल है वोही उसकी तरफ से उसके अहकाम और उसकी हिदायात इंसानों को पहुंचाता है और वोही अपने कौल व अमल से उन अहकाम व हिदायात की तशरीह करता है | पस रसूल इंसानी ज़िंदगी में खुदा की कानूनी हाकिमिय्यत (Legal Sovereignty) का नुमाइंदा है और इस बिना पर उसकी इता`अत ऐन खुदा की इता`अत है खुदा ही का ये हुक्म है कह रसूल के अम्र-ओ-नहि और उसके फैसलों को बे-चून-ओ-चरा तस्लीम किया जाए, हत्ता कह उन पर दिल में भी नागवारी पैदा न हो, वरना ईमान की खैर नहीं है :


  और हमने जो रसूल भेजा है इस लिए भेजा है कह अल्लाह के इज़्न से उसकी इता`अत की जाए ” ( 4 : 64)


“ और जिसने रसूल की इता`अत की उस ने दरअस्ल अल्लाह की इताअत की” ( 4 : 80)


“ और जो कोई रसूल से इख्तिलाफ करे जब कह हिदायत उस पर वाज़ेह हो चुकी हो और ईमान लाने वालों की रोष छोड़ कर दूसरी राह चले उसे हम उसी तरफ फैर देंगे जिधर वो खुद फिर गया और उसको जहन्नुम में छोड़ेंगे और वो बहुत बुरा ठिकाना है ” ( 4 : 115)


“ जो कुछ रसूल तुम्हें दें उसे ले लो और जिस चीज से रोक दें उससे बाज़ रहो और अल्लाह से डरो अल्लाह सख्त सज़ा देने वाला है ” ( 59 : 7)


“ पस नहीं, तेरे रब की क़सम वो हरगिज मोमिन न होंगे जब तक कह (ऐ नबी) वो तुझे अपने बाहमी इख्तिलाफ में फैसला करने वाला न मान लें और फिर जो फैसला तू करे उस पर अपने दिल में भी तंगी महसूस न करें बल्कि सर-बा-सर तस्लीम करें” (4 : 65)

 

बाला-तर कानून

 खुदा और उसके रसूल का हुक्म कुरआन की रो से बाला-तर कानून (Supreme Law) है जिसके मुकाबले में अहल-ए- ईमान सिर्फ इता`अत ही का रवय्या इख्तियार कर सकते हैं जिन मामलात में खुदा और रसूल अपना फैसला दे चुके हैं उनमे कोई मुसलमान खुद आजादाना फैसला करने का मिजाज़ नहीं है और उस फैसले से इन्हिराफ़ ईमान की जिद है.


“ किसी मोमिन मर्द और किसी मोमिन औरत को यह हक नहीं है कह हब अल्लाह और उसका रसूल किसी मामले का फैसला कर दें तो अपने उस मामले में उन के लिए कोई इख्तियार बाकी रह जाए, और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की नाफ़रमानी करे वह खुली गुमराही में पड़ गया” ( 33 : 36)



“वो कहते हैं कह हम ईमान लाए अल्लाह और उसके रसूल पर और हमने इता`अत क़ुबूल की, फिर उसके बाद उनमे से एक फरीक मुंह मोड़ता है ये लोग हरगिज़ मोमिन नहीं हैं और जब उनको बुलाया जाता है अल्लाह और उसके रसूल की तरफ ताकि रसूल उनके दरमियान फैसला करें तो उन में से एक फरीक मुंह मोड़ जाता है” ( 24 : 47-48)


“ ईमान लाने वालों का काम तो ये है कह जब वो बुलाये जाएँ अल्लाह और उसके रसूल की तरफ ताकि रसूल उनके दरमियान फैसला करें तो वो कहें कह हमने सुना और इताअत की, ऐसे ही लोग फलाह पाने वाले हैं ” (24: 51) 

 

खिलाफत

 इंसानी हुकूमत की सही सूरत कुरआन की रु से सिर्फ यह है कह रियासते खुदा और रसूल की कानूनी बालाद्स्ती तस्लीम कर के उसके हक में हाकिमिय्यत से दस्त बरदार हो जाए और हाकिम हकीकी के तहत “खिलाफत” (नियाबत) की हैसियत कुबूल करे इस हैसियत में उस के इख्तियारात, ख्वाह वह तशरी`ई हों या अदालती या इन्तिज़ामी, लाज्मन उन हुदूद से महदूद होंगे जो ऊपर पेराग्राफ 3,4 और 5 में बयान हुए हैं :


“ (ऐ नबी) हमने ये किताब तुम्हारी तरह हक के साथ नाजिल की है जो तस्दीक करती है पहले आई हुई किताबों की और निगहबान है उन पर पस जो कुछ अल्लाह ने नाजिल किया है तुम उसके मुताबिक़ लोगों के दरमियाँ फैसला करो और लोगों की ख्वाहिशात की पैरवी में इस हक से मुंह न मोड़ों जो तुम्हारे पास आया है” ( 5 : 48)


“ ऐ दाऊद !  हमने तुम को ज़मीन में खलीफा बनाया है लिहाज़ा तुम हक के साथ लोगों के दरमियान फैसला करो और ख्वाहिश-ए-नफ्स की  पैरवी न करो कह वो तुमहें अल्लाह के रास्ते से भटका ले जाए ” (38 : 26)

 

खिलाफत की हकीकत

 इस खिलाफत का जो तसव्वुर कुरआन में दिया गया है वो यह है कह ज़मीन में इंसान को जो कुदरतें भी हासिल हैं खुदा की अता और बख्शिश से हासिल हैं खुदा ने खुद इंसान को इस हैसियत में रखा है कह वो उसकी बख्शी हुई ताकतों उसके दिए हुए इख्तियार से उसकी ज़मीन में इस्तेमाल करे इस लिए इंसान यहाँ खुद मुख्तार मालिक नहीं बल्कि अस्ल मालिक खलीफ़ा है :

“ और याद करो जब तुम्हारे रब ने मलाइका से कहा कह मैं ज़मीन में एक खलीफ़ा बनाने वाला हूँ ؎” (2 : 30)



“  (ऐ इंसानों) हमने तुम्हें ज़मीन में इख्तियारात के साथ बसाया और तुम्हारे लिए इस में सामा-ए- ज़ीस्त फराहम किये ” ( 7 : 10)


“ क्या नहीं देखते हो कह अल्लाह ने तुम्हारे लिए वो सब कुछ मुस्ख्खिर कर दिया जो ज़मीन में है” (22 : 65)

 

हर वो कौम जिसे ज़मीन के किसी हिस्से में इक्तिदार हासिल होता है, दरअस्ल वहां खुदा की खलीफ़ा होती है :


“ (ऐ कौम-ए- आद) याद करो जब अल्लाह ने तुम को कौम-ए- नूह के बाद खलीफ़ा बनाया” (7 : 69)


“ (और ऐ कौम-ए- समूद) याद करो जब कह उसने तुम्हें आद के बाद खलीफ़ा बनाया” (7 : 74)


“ (ऐ बनी इस्राइल ) करीब है वो वक़्त कह तम्हारा रब तुम्हारे दुश्मन (फिरौन) को हलाक करे और ज़मीन में तुमको खलीफ़ा बनाए और फिर देखे कह तुम कैसे अमल करते हो” (7 : 129)


“फिर हमने तुम्हें ज़मीन में खलीफ़ा बनाया ताकह उन के बाद देखें तुम कैसे अमल करते हो” ( 10 :14)


 लेकिन ये खिलाफत सही और जाइज़ खिलाफत सिर्फ उसी सूरत में हो सकती है जब कह यह मालिक-ए- हकीकी के हुक्म की ताबे हो उस से रु`गर्दानी कर के जो खुद मुख्ताराना निजाम-ए-हुकूमत बनाया जाए वह खिलाफत के बजाए बगावत बन जाता है :


“ वोही है जिसने तुम को ज़मीन में खलीफ़ा बनाया, फिर जो कुफ्र करे तो उस का कुफ्र उसी पर वबाल है और काफिरों के हक में उनका कुफ्र उन के रब के हाँ किसी चीज में इजाफा नहीं करता मगर उस के गज़ब में, और काफिरों के लिए उन का कुफ्र कोई चीज नहीं बढ़ाता मगर खसारा” (35 : 39)

“ क्या तूने नहीं देखा कह तेरे रब ने क्या किया आद के साथ ......... और समूद के साथ जिन्होंने वादी में पत्थर तराशे और मेखों वाले फिरौन के साथ जिन्होंने मुल्क में सरकशी की ?” ( 89 : 6-11)

“ (ऐ मुसा) जा फिरौन के पास कह वो सरकश हो गया है ....... फिरौन ने लोगों से कहा कह तुम्हारा रब बरतर मैं हूँ ” (79 : 17-24)


“ तुम में से जो लोह ईमान लाए हैं और जिन्होंने नैक अमल किये हैं अल्लाह ने उनसे वादा किया है कह वह उन्हें ज़मीन में खलीफ़ा बनाएगा जिस तरह उसने उन से पहले लोगों को खलीफ़ा बनाया था ....... वो मेरी बंदगी करें, मेरे साथ किसी चीज को शरीक न करें ” (24 : 55)

 

जारी  है .................अध्याय-1, भाग-5

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