अंगारे
उर्दू की सबसे चर्चित, विवादित व प्रतिबंधित किताब
उर्दू अदब की सबसे चर्चित व विवादित किताब “अंगारे” जो कि 1932 ई० में लखनऊ से
प्रकाशित हुई। प्रकाशित होते ही इस किताब पर आपत्तियां लगने लगीं। समाचारपत्रों
में इस किताब के विरोध में लेख तथा सम्पादकीय छपने लगे। जगह जगह विरोध प्रदर्शन
तथा आन्दोलन होने लगे। कई जगह “अंगारे” की प्रतियाँ जलाई गईं। अदब की दुनिया में हलचल
मच गई। आखिर ऐसा क्या था इस
किताब में जिसके चलते इतना विरोध हुआ ?
“अंगारे” चार लेखकों की कुल 10 रचनाओं
(9 लघु कहानियाँ तथा 1 ड्रामा) का संग्रह है। जिसमें समाज में फैली रूढ़िवादिता, महिलाओं का
निम्न सामाजिक स्तर तथा धर्म के नाम पर किये जा रहे कृत्यों को बेनिक़ाब किया गया। विरोध का एक
मुख्य कारण यह था कि लेखकों ने कहानियों के किरदारों की भाषा व शब्दों के चुनाव को
लेकर सहिष्णुता नहीं बरती जिससे धार्मिक भावनाएं आहत हुईं।
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अंगारे उर्दू कवर पृष्ठ (rekhta.org) |
हिंदी पाठकों तक “अंगारे” की पहुँच बनाने का श्रेय ‘शकील सिद्दीकी’ साहब को जाता
है। जिन्होंने “अंगारे” का प्रथम
हिंदी अनुवाद वर्ष 2016 में किया, जिसको ‘वाणी प्रकाशन’ द्वारा प्रकाशित किया गया। मेरे द्वारा “अंगारे” का दूसरा हिंदी अनुवाद किया जा रहा
है जिसमें अरबी, फ़ारसी के कठिन शब्दों, वाक्यों तथा मुहावरों की सरल संक्षिप्त
व्याख्या फुटनोट में दी गई है। अनुवाद में यह कोशिश की गई है कि उस समय के
रोज़मर्रा और आम बोल-चाल में बोले जाने वाले शब्दों, वाक्यों जिसमें अरबी, फ़ारसी
भाषा का रंग अत्याधिक मिलता है, का सरल शब्दों में प्रयोग कर ‘हिन्दुस्तानी भाषा’
में अनुवाद किया जाए, न कि हिंदी अनुवाद के नाम पर हिंदी, संस्कृत के कठिन शब्दों
का प्रयोग कर अनुवाद को कठिन बनाया जाए। ताकि आम हिंदी पाठक को कहानियों के भाव व
मर्म को समझने में किसी भी प्रकार की कोई भाषा संबंधी समस्या न रहे।
इस पुस्तक में “अंगारे” की कहानियों के हिंदी अनुवाद के अलावा “अंगारे” पर लगी
आपत्तियों व समाचार पत्रों द्वारा “अंगारे” के विरोध में लिखे लेखों तथा प्रतिबंध
के सम्बन्ध में की गईं कार्रवाइयों व “अंगारे” के सभी लेखकों का जीवन परिचय
संक्षिप्त रूप से पेश किया गया है। ताकि पाठक “अंगारे” के समस्त पहलु से अवगत हो
सकें।
आशा है कि हिंदी पाठकों के लिए “अंगारे” का यह हिंदी अनुवाद सरल, सुगम व लाभकारी रहेगा।
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