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1857 की क्रांति और अंग्रेजों के मुख़बिर

 


1857 की क्रांति और अंग्रेजों के मुख़बिर

- फ़रीद अहमद 

प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम-1857 को विफल करने में मुख़बिरों  की मुख्य भूमिका रही। जहाँ तक संभव हो सका मुख़बिरों ने अंग्रेज अधिकारियों तक क्रांतिकारियों की गुप्त सूचनाएं,रणनीतियां,योजनाएं तथा दिल्ली किले व बहादुर शाह ज़फर के सम्बन्ध में समस्त सैन्य जानकारी, हथियार, गौला-बारूद की स्तिथि तथा सामाजिक, आर्थिक व व्यावसायिक जानकारियाँ उपलब्ध करा स्वतंत्रता संग्राम को विफल करने में अंग्रेजों को पूर्ण सहयोग दिया।

प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम-1857 के सम्बन्ध में मुखबिरी करने वाले मुख्य मुख़बिरों में मिर्ज़ा रज़ब अली, गौरी शंकर, जवाहर सिंह, मेघराज, तुराब अली इत्यादि प्रमुख मुखबिर रहे जिन्होंने लिखित रूप से अपने पत्रों के माध्यम से मुखबिरी की

मुखबिर मिर्ज़ा रजब अली चालकी से बादशाह बहादुर शाह ज़फर की सुरक्षा सलाहकार समिति का सदस्य नियुक्त होकर बारूदखाने का प्रबंधक बनने में सफल हो गया और बहादुर शाह ज़फर व किले की समस्त गतिविधियों तथा हथियार, गौला-बारूद की स्तिथि से अंग्रेज अधिकारियों को सरलता पूर्वक अवगत रहा। 18 अगस्त 1857 के एक पत्र में मिर्ज़ा रजब अली मुखबिरी करते हुए शाही महल की गतिविधियों का वरण करते हुए लिखता है –

“हालात तेज़ी से बदल रहे हैं। बादशाह की परामर्श कोंसिल की योजनाओं पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता। शाही महल में अफरा-तफरी मची हुई है। शहजादों में प्रतिदिन मतभेद बढ़ते जा रहे हैं। जीनत महल अंग्रेजों की तरफ़ होती जा रही हैं लेकिन कुछ नहीं कर सकती। हकीम अहसन उल्लाह खां को अलग कर दिया गया है। बादशाह की मोहर को जो चाहता है प्रयोग करता है। महल में हजारों योजनायें बनती हैं और शहर में प्रचारित होती हैं लेकिन उनमे से कोई भी सफल नहीं होती।”

एक दूसरे पत्र दिनांक 19 जून 1857 में मिर्ज़ा रजब अली लिखता है-

“आज जयपुर से आये हुए सरदारों ने दरबार में हाजरी दी। यह लोग जालंधर से दो सौ सिपाही और एक सौ घोड़े अपने साथ लाए हैं और अब शहर की चारदीवारी के बहार डेरा डाले हुए हैं। केवल्री की छटी रेजिमेंट के साथ इनका विवाद चल रहा है।”

इसी प्रकार दिनांक 29 जुलाई 1857 का एक पत्र जो कि अंग्रेज अधिकारी हौडसन को मिर्ज़ा रजब अली ने दिल्ली के साम्प्रदायक स्तिथि का वरण करते हुए लिखा-

“आज शहर के हिन्दुओं ने पांच कसाइयों को गोवध करने पर मार दिया। हिन्दुओं और मुसलामानों के बीच मतभेद बढ़ता जा रहा है। बादशाह सलामत ने इसकी रोकथाम के लिए शहर में गाय बल्कि बकरे के मांस बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया है। कट्टर मुसलमान इस पर नाराज़ हैं। उन्होंने ईद के दिन सार्वजानिक रूप से गोवध का ऐलान कर रखा है।”

मिर्ज़ा रजब अली बारूद की स्तिथि का वरण करते हुए लिखता है-

 

“...यहाँ पर लगभग 400 मन कच्चा गंधक है। लेकिन साफ़ किये हुए गंधक का कोई भण्डार शहर में उपलब्ध नहीं .....”

     इसी पत्र में मिर्ज़ा रजब अली आगे लिखता है –

“मैंने बादशाह सलामत को सुझाव दिया था कह कि उनको चाहिए गुप्त रूप से शहर का दरवाज़ा खुलवा कर अंग्रेज़ी फौज की शहर में प्रवेश व्यवस्था करें। इस तरह उनकी जान तो शायद न बच सके लेकिन इस एहसान के बदले अंग्रेज उनके परिवार से सभ्य व्यवहार करेंगे। बादशाह सलामत तो सहमत हो जाते लेकिन हकीम अहसान उल्लाह खां ने हस्तक्षेप कर बात बिगाड़ दी।”

     मुखबिर गोरी शंकर दिनांक 21 अगस्त 1857 के पत्र में फौज की स्तिथि का वरण करते हुए अंग्रेज अधिकारी को लिखता है-

“मैंने प्रत्येक रेजिमेंट के सम्बन्ध में जांच की है। ज्ञात हुआ है कि 330 और 500 के मध्य हैं इससे अधिक नहीं । यहाँ पर 30 रेजिमेंट हैं और प्रत्येक रेजिमेंट में लगभग 300 सिपाही हैं। कई रेजिमेंटों में एक या दो कंपनियों की कमी है। इस लिए हर रेजिमेंट में व्यक्तियों की औसत 300 होती है। इस गणित से इन्फ्रेंट्री के व्यक्ति 10 हज़ार बनते हैं और इससे अधिक नहीं। 4 हज़ार सवार इनके अतिरिक्त हैं। इस प्रकार फौज की कुल संख्या 15 या 16 हज़ार से किसी भी प्रकार से भी अधिक नहीं है।”

एक दूसरे पत्र दिनांक 01 सितंबर 1857 में मुखबिर गोरी शंकर ने बारूद के सम्बन्ध में जानकारी देते हुए लिखा-

“शहर में गंधक की अत्याधिक कमी है। बारूद बनाने का कारखाना बंद पड़ा है। तुलाराम को रेवाड़ी से गंधक का भण्डार भेजने को कहा गया है।”

दिनांक 10 सितम्बर 1857 के एक पत्र में मुखबिर गोरी शंकर, अंग्रेजी अधिकारी के प्रश्न के सन्दर्भ में फौज का सटीक वरण करते हुए उत्तर लिखता है-

“अब मैं आपको दूसरे प्रश्न, विद्रोही फौज की संख्या और रेजिमेंटों की ओर आता हूँ। इसका विवरण निम्नलिखित है-

कर्नल सिनकर के घर पर न्यू इन्फ्रेंट्री की 19वीं और 20वीं रेजिमेंट, काबुली दरवाज़ा और पुल के मध्य 16वीं न्यू इन्फ्रेंट्री (हुसैनी), गिरजाघर पर पुलिस बटालियन (आगरा), कचहरी पर 38वीं न्यू इन्फ्रेंट्री, निगमबोद्ध पर एक रेजिमेंट जिसका नाम ज्ञात न हो सका, लाहौरी दरवाज़ा पर 5वीं न्यू इन्फ्रेंट्री, हौज़ क़ाज़ी से सीताराम बाज़ार और जगली मौहल्ला से तुर्कमान दरवाज़े तक 3-36 और 61 इन्फ्रेंट्री, दिल्ली दरवाज़े के निकट, बाज़ार में 74 न्यू इन्फ्रेंट्री, दरियागंज में 115 और 30 न्यू इन्फ्रेंट्र, नसीराबाद की 3 रेजिमेंट, 6 और 19 रेगुलर केवल्री और 6 और 7 इर्रेगुलर केवल्री और सआउद्दीन की फौज, बेगम समरू के बाग़ में 3 केवल्री और हिन्दुस्तानी सवार।”

    मुखबिर जवाहर सिंह अपने पत्र दिनांक 02 जुलाई 1857 के में अंग्रेज अधिकारी को विवरण लिखता है –

“हम मानिया नामक जासूस के साथ दिल्ली पहुंचे थे। 30 जून को सुबह 4 बजे पांच रेजिमेंट जिन का नेतृत्व बैली (Bailey) की पलटन कर रही थी शहर से बाहर आईं। इनमे से तीन रेजिमेंट दिल्ली ब्रिगेड की थीं। इनको दूसरे विद्रोहियों ने ताना व गाली-गलौच के बाद शहर से बहार धकेल दिया था। इनके साथ 600 सवार भी थे। इनमे से 50 या 60 लड़ने के लिए आगे बढ़े।”

   मुखबिर जवाहर सिंह ने अपने एक अन्य पत्र दिनांक 04 अगस्त 1857 में फौज की गुप्त रणनीतियों के सम्बन्ध में लिखा-

“आज फौज के सभी अधिकारियों ने शाही दरबार में हाजरी दी। यह तय पाया कि नजफगढ़ के रास्ते अलीपुर फौज भेजी जाए। अलीपुर पहुँचने पर यह फौज एक रात के लिए पड़ाव डालेगी। यह भी फ़ैसला किया गया कि नजफ़गढ़ पहुँच कर यह फौज अंग्रेजों के कैम्प के सामने प्रदर्शन करे ताकि उनका ध्यान इधर भटके हो और वो लोग इनका पीछा करने के लिए फौज भेजें।”

  दिनांक 20 जून 1857 के एक पत्र में मुखबिर जवाहर सिंह फौज की गतिविधियों का वरण करता है-

“मैंने विद्रोही फौज के पांच से सात हज़ार के लगभग सिपाहियों को अंग्रेज़ी केम्प पर हमला करने के लिए शहर से बाहर जाते देखा। फौज ने नहर के किनारे डेरा लगा लिया।................. मैंने कुछ विद्रोहियों को आपस में बात करते सुना जो कह रहे थे कि उन्हें चाहिए कि अंग्रेज़ी केम्प पर पीछे और सामने से पुनः सम्पूर्ण शक्ती के साथ हमला किया जाना चाहिए ताकि या तो वो अंग्रेजी फौज पर विजय प्राप्त कर लें या लड़ते हुए शहीद हो जाएँ। उनका इरादा है कि जालंधर की फौज आने के बाद अंग्रेज़ी फौज को बागपत और सोनीपत से आने वाली सहायक टुकड़ी को रास्ते में रोक कर नष्ट कर देना चाहिए।”

  मुखबिर मेघ राज झांसी की फौज का वरण अपने ख़त दिनांक 15 जुलाई 1857 में इस प्रकार करता है-

“3 तोपों सहित 11वीं इर्रेगुलर रेजिमेंट और इक्का-दुक्का पलटनों की आधी फौज 3 तोपों सहित झांसी से दिल्ली पहुँचने वाली है। इनके स्वागत के लिए फौज के 100 सवार हिंडन नदी के किनारे उपस्थित हुए। झांसी की फौज अपने साथ जो खजाना लाई वो निम्न लिखित भागों में विभक्त हुआ –

सवार 610 रूपये प्रति व्यक्ति, सरदार –पद अनुसार, सिपाही 400 रूपये प्रति व्यक्ति, कारीगर तथा सहायक 100 रूपये प्रति व्यक्ति, निर्धन व बिखारी 25 रुपये प्रति व्यक्ति. चोकीदार 50 रूपये प्रति व्यक्ति।”

   मुखबिर तुराब अली अपने पत्र दिनांक 17 अगस्त 1857 में बारूद के सम्बन्ध में तथा फौज की स्तिथि से अवगत कराते हुए लिखता है-

“बारूद अत्याधिक खराब है और फौज स्टोर से उच्च कोटि के बारूद की मांग कर रही है। दिल्ली का बारूदखाना दिल्ली रेजिमेंट के अधीन में है।..........वर्षा के कारण फौजों की रवानी स्थगित कर दी गई। नीमच फौज के जनरल ने अनुरोध किया है कि उसे बरेली ब्रिगेड की उस टुकड़ी पर जो बागपत रवाना हुई है, शक है कि यह टुकड़ी किसी तरह भी उस फौज से आ मिलेगी। उस का ख्याल है कि यह टुकड़ी भागने का इरादा रखती है।”

   शहर में खाद्य पदार्थों के मूल्यों के सम्बन्ध मुखबिर हरचंद ने अपने पत्र दिनांक 03 जुलाई 1857  में लिखा-

“शहर में खाने पीने की वस्तुएं के भाव निम्नलिखित हैं –

आटा  22 सेर, गंदुम 39 सेर, घी 2 सेर, शक्कर 7 सेर, गुड़ 9 सेर।”

   मुखबिर कल्लू अपने पत्र दिनांक 13 जुलाई 1857 में अंग्रेजी फौज पर हमले की आशंका व्यक्त करते हुए अंग्रेज अधिकारी को अवगत कराते हुए लिखता है-

“हम ने लाहौरी दरवाज़े से शहर में प्रवेश किया। विद्रोही फौज ने हमें बिखारी समझ कर हिरासत में ले लिया हम 6 घंटे हिरासत में रहे। इस बीच हमें पता चला कि बीजा बाई और दूसरे विद्रोहियों ने आगरा जेल पर हमला करके सभी कैदियों को रिहा करा लिया है। और वहाँ पर उपस्थित अंग्रेजी फौज को घेर लिया है। यह विद्रोही अब दिल्ली की ओर कूच करने वाले हैं......अतः 12 तारीख को अंग्रेजी कैम्प पर हमला करने की योजना बनाई गई थी उसी अब आगरा की फौज के यहाँ पहुचने तक स्थगित कर दिया गया है। लेकिन आगरा के विद्रोही यहाँ पहुंचे या न पहुंचे, हमला जरूर होगा............”

  मुखबिर अच्छु और गोपाल गौला-बारूद के सम्बन्ध में मुखबिरी करते हुए दिनांक 25 जुलाई 1857 के पत्र में लिखते हैं-

“...... पुराने बारूद के अभी तक 200 ढोल शेष हैं। लगभग 1200 रूपये का बारूद प्रतिदिन तैयार होता है। कारतूसों की टोपियों की शहर में कमी है। उनकी खोज जारी है। शहर में प्रतिदिन लगभग 2000 टोपियाँ तैयार की जा रही हैं।”

   इस प्रकार से अन्य मुखबिर भी समय-समय पर मुखबिरी करते रहे और 1857 के सवतंत्रत संग्राम के सम्बन्ध में अहम जानकारियां अंग्रेज अधिकारियों को पत्र के रूप में लिख प्रेषित करते रहे। लगभग सभी पत्र उर्दू भाषा में लिखे गए थे। जिनका अंग्रेजी अनुवाद कर उच्च अंग्रेज अधिकारियों को प्रेषित किये जाते थे ।

मुख़बिरों  के इन पत्रों पर की जाने वाली कार्यवाही व महत्व के सम्बन्ध में “सलीम कुरैशी” साहब  “गद्दारों के खुतूत” में लिखते हैं -

“इस किताब में गद्दारों के जो पत्र सम्मिलित किये जा रहे हैं वो ‘इन्डियन ऑफिस ऑफ़ लाइब्ररी एण्ड रिकार्ड्स’ (Indian office of library and records) की धरोहर में हैं। ‘सर रॉबर्ट मोंटगोमरी’ (Sir Robert Montgomery) की पत्रावली में इन पत्रों के सम्बन्ध में जो विवरण अंकित हैं उन से ज्ञात होता है कि ‘मेज़र हौडसन’ (Major Hodson), मुख़बिरों  की ओर से प्राप्त होने वाले वाले पत्रों की प्रतिलिपि तैयार करा के सतलुज नदी की पश्चिमी रियासतों के कमिश्नर ‘जॉर्ज बार्न्स’ (George Barnes) के पास अम्बाला भेजता था, जो अपने सहायक कमिश्नर ‘जॉर्ज लेविन’ (George Lewin) से इनका अंग्रेजी अनुवाद करा कर मुख्य कमिश्नर ‘जॉर्ज लारेंस’ (George Lawrence) के पास लाहौर प्रेषित किया करता था। ‘लारेंस’ इनका अध्ययन करने के बाद अपने नोट्स के साथ पंजाब के ज्यूडिशियल कमिश्नर सर रॉबर्ट मोंटगोमरी’ (Sir Robert Montgomery) को भेज देता था। ‘मोंटगोमरी’ की पत्रावली में इन पत्रों के जो अनुवाद हैं उन सब पर ‘जॉर्ज लारेंस’ (George Lawrence) के हस्ताक्षर अंकित हैं।”    (गद्दारों के खुतूत, पृ० 15)



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