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Khilafat o Mulukiyat 3-3/ ख़िलाफ़त ओ मुलूकिय्यत 3-3


किताब- ख़िलाफ़त ओ मुलूकिय्यत

लेखक- मौलाना अबुल आला मौदूदी

देवनागरी लिप्यंतरण- फ़रीद अहमद

 

   अध्याय -3

  भाग-3

खिलाफत-ए-राशिदा और उसकी खुसूसियात

 

4-     हुकूमत का तसव्वुर

इन लोगों का तसव्वुर-ए-हुकूमत क्या था ? फरमां-रवा होने की हैसियत से यह अपने मुकाम और अपने फ़राइज़ के मुतालिक क्या ख्याल रखते थे ? और अपनी हुकूमत में किस पालिसी पर आमिल थे ? इन चीजों को उन्होंने खुद खिलाफत के मिम्बर से तक़रीर करते हुए बरसर-ए-आम बयान कर दिया था हजरत अबुबकर (रजि०)  की पहली तक़रीर जो उन्होंने मस्जिद-ए-नबवी में आम बैत के बाद की, उसमें वह कहते हैं –

“मैं आप लोगों पर हुक्मरान बनाया गया हूँ हालाँकि मैं आप सबसे बेहतर आदमी नहीं हूँ उस ज़ात की कसम जिसके हाथ में मेरी जान है, मैंने ये मंसब अपनी रगबत और ख्वाइश से नहीं लिया है न मैं यह चाहता था कह किसी दूसरे के बजाए मुझे मिले न मैंने कही खुदा से इस के लिए दुआ की न मेरे दिल में कभी इसकी हिर्स पैदा हुई मैंने तो इसे बादिल-ए-ना`ख्वास्ता इस लिए क़ुबूल किया है कह मुझे मुसलामानों में फितना इख्तिलाफ और अरब में फितना इर्तेदाद बरपा हो जाने का अंदेशा था मेरे लिए इस मंसब में कोई राहत नहीं हैं, बल्कि एक बार-ए-अज़ीम है जो मुझ पर दाल दिया गया है, जिसके उठाने की ताक़त मुझ में नहीं है इल्ला यह कह अल्लाह ही मेरी मदद फरमाए मैं यह चाहता था कह मेरे बजाए कोई और यह भार उठा ले अब भी अगर आप लोग चाहें तो असहाब-ए-रसूल अल्लाह (स०) में से किसी और को इस काम के लिए चुन लें, मेरी बैत आपके रास्ते में हाइल न होगी आप लोग मुझे रसूल अल्लाह (स०) के मयार पर जाचेंगे और मुझ से वो तवक़्क़ु'आत रखेंगे जो हुज़ूर (स०) से आप रखते थे तो मैं उसकी ताक़त नहीं रखता, क्यूंकि वो शैतान से महफूज़ थे और उन पर आसमान से वही नाजिल होती थी अगर मैं ठीक काम करूँ तो मेरी मदद कीजिये, और अगर गलत काम करूँ तो मुझे सीधा कर दीजिये सच्चाई अमानत है और झूट खियानत है तुम्हारे दरियान जो कमज़ोर है वो मेरे नज़दीक कवी है यहाँ तक कह मैं उसका हक उसे दिलवाऊं अगर खुदा चाहे और तुम में से जो ताक़तवर है वो मेरे नज़दीक कमज़ोर है यहाँ तक कह मैं उससे हक वुसूल करूँ अगर खुदा चाहे कभी ऐसा नहीं होता कह कोई कौम अल्लाह की राह में जद-ओ-जेहद छोड़ दे और अल्लाह उस पर ज़िल्लत मुसल्लत कर दें, और किसी कौम में फवाहिश फैले और अल्लाह उसको आम मुसीबत में मुब्तिला न कर दे मेरी इताअत करो जब तक मैं अल्लाह और रसूल (स०) का मुतीए रहूंगा और मैं अल्लाह और रसूल (स०) की नाफ़रमानी करूँ तो मेरी कोई इताअत तुम पर नहीं है मैं पैरवी करने वाला हूँ, नई राह निकालने वाला नहीं हूँ[1]

हज़रत उमर (रजि०) अपने एक खुत्बे में कहते हैं –

“लोगों, कोई हक वाला अपने हक में उस मर्तबे को नहीं पहुंचा है कह अल्लाह की मआसियत में उसकी इताअत की जाए ........... लोगों मेरे और तुम्हारे जो हुकूक हैं वो मैं तुमसे बयान किये देता हूँ, उनपर तुम मुझे पकड़ सकते हो मेरे ऊपर तुम्हारा हक यह है कह मैं तुम्हारे खिराज  अलालह के अता कर्दा फ़े में से कोई चीज न वसूल करूँ मगर कानून के मुताबिक़, और मेरे ऊपर तुम्हारा हक ये है कह जो कुछ माल इस तरह मेरे पास आये उस में से कुछ न निकले मगर हक के मुताबिक़[2]

हजरत अबुबकर (रजि०) जब शाम व फिलिस्तीन की मुहिम पर हजरत अमर बिन आस (रजि०) को रवाना कर रहे थे उस वक़्त उन्होंने जो हिदायत उन को दी उन में वो फरमाते हैं –

“ऐ अमर, अपने खुले और छुपे हर काम में खुदा से डरते रहो और उससे हया करो, क्यूंकि वो तुम्हें और तुम्हारे अमल को दख रहा है .....आखिरत के लिए काम करो और अपने हर अमल में खुदा की रजा को पेश-ए-नज़र रखो अपने साथियों के साथ इस तरह पेश आओ जैसे वो तुम्हारी औलाद हैं लोगों के राज़ न टटोलो और उनके ज़ाहिर पर ही उन से मामला करो ..... अपने आप को दुरुस्त रखो, तुम्हारी रईय्यत भी दुरुस्त रहेगी[3] 

हजरत उमर (रजि०) लोगों को आमिल बना कर कहीं भेजते थे उनको खिताब करके कहते –

“ मैं तुम लोगों को उम्मते मुहम्मद (स०) पर इस लिए आमिल मुक़र्रर नहीं कर रहा हूँ कह तुम उनके बालों और उनकी खालों के मालिक बन जाओ बल्कि मैं इस लिए मुक़र्रर करता हूँ कह तुम नमाज कायम करो, लोगों के दरमियान हक के साथ फैसला करो और अदल के साथ उनके हुकूक तकसीम करो[4]

हज़रत उस्मान (रजि०) ने बैत के बाद जो पहला खुतबा दिया उसमे उन्होंने फ़रमाया –

“सुनो, मैं पैरवी करने वाला हूँ, नई राह निकालने वाला नहीं हूँ जान लो कह किताब अल्लाह और सुन्नत रसूल (स०) की पैरवी करने के बाद तीन बातें हैं जिन की पाबन्दी का मैं तुमसे अहद करता हूँ एक यह कह मेरी खिलाफत से पहले तुमने बाहमी इत्तिफाक से जो कायदे और तरीके मुक़र्रर किये थे उन की पैरवी करूंगा दूसरे यह कह जिन मामलात में पहले कोई कायदा मुकर्रर नहीं हुआ है उन में सब के मशवरे से अहल-ए-खैर का तरीका मुक़र्रर करूंगा तीसरे यह कह तुमसे अपने हाथ रोके रखूंगा जब तक कह तुम्हारे खिलाफ कोई कार्यवाही करना कानून की रो से वाजिब न हो जाए[5]  

हजरत अली (रजि०) हजरत कैस बिन साद (रजि०) को मिस्र का गवर्नर मुक़र्रर कर के जो फरमाने अहल-ए-मिस्र के नाम भेजा था उसमे वो फरमाते हैं –

“खबरदार रहो ! तुम्हारा हम पर यह हक है कह हम अल्लाह की किताब और उसके रसूल की सुन्नत के मुताबिक़ अमल करें और तुम्हारे मामलात को अल्लाह के मुक़रार कर्दा हक के मुताबिक़ चलायें, और नबी (स०) की सुन्नत को नाफ़िज़ करें, और तुम्हारे दर-पर्दा भी तुम्हारे साथ खैर ख्वाही करें

“इस फरमान को मजमुए आम में सुनाने के बाद हज़रात कैस बिन साद (रजि०) ने ऐलान किया कह “ अगर हम इस तरीके पर तुम्हारे साथ बर्ताव न करें तो हमारी कोई बैत तुम पर नहीं[6]

एक गवर्नर को हज़रत अली (रजि०) ने लिखा –

“ अपने और रईय्यत के दरमियान लम्बे चौड़े परदे हाइल न करो, हुक्काम का रईय्यत से पर्दा करना नजर की तंगी है और इल्म की कमी का एक शाख-साना है इस पर्दे की वज़ह से उन को सही हालात मालूम नहीं होते, छोटी बातें उन के लिए बड़ी बन जाती हैं और बड़ी बातें छोटी हो जाती हैं , अच्छाई उनके सामने बुराई बन जाती है और बुराई अच्छाई के शक्ल इख्तियार कर लेती है, और हक बातिल के साथ खलत मलत हो जाता है[7]  

यह हजरत अली (रजि०) का महज़ कौल ही न था बल्कि उनका अमल भी इसी के मुताबिक़ था कूफा के बाजारों में खुद दुर्रह लेकर निकलते, लोगों को बुराइयों से रोकते, भलाइयों की तलकीन करते और ताजिरों की एक एक मंडी का चक्कर लगा कर यह देखते कह वो कारोबार में बदनियती तो नहीं कर रहे हैं इस रोज़ मर्रारह की गश्त में कोई अजनबी आदमी उनको देख कर यह अन्दाज़ा नहीं कर सकता था कह यह बिलाद-ए-इस्लाम का खलीफ़ा उसकी आँखों के सामने फिर रहा है, क्यूंकि न उनके लिबास से बादशाही की शान ज़ाहिर होती थी और न उनके आगे कोई चौबदार हटो बचो कहता फिरता था[8]   

एक मर्तबा हजरत उमर (रजि०) ने बर`सरे आम ऐलान किया कह “ मैंने अपने आमिलों को इस लिए नहीं भेजा कह वो तुम लोगों को पीटें और तुम्हारा माल छीनें, बल्कि इस लिए भेजा है कह तुम्हारा दीन और तुम्हारे नबी का तरीका सिखाएं जिस शख्स के साथ इस के खिलाफ अमल किया गया हो वो मेरे पास शिकायत लाए, खुदा की कसम मैं उससे बदला लूंगा”  इस पर हजरत अमर बिन आस (रजि०) (मिस्र के गवर्नर ) ने उठ कर कहा “ अगर कोई शख्स मुसलमान का वाली हो और ता`दीब की गरज से किसी को मारे तो क्या आप उससे बदला लेंगे ?” हजरत उमर (रजि०)  ने जवाब दिया “ हाँ, खुदा की कसम मैं उससे बदला लूंगा मैंने खुद रसूल अल्लाह (स०) को अपनी ज़ात से बदला देते देखा है[9] 

एक मौके पर हजरत उमर (रजि०) ने अपने तमाम गवर्नरों को हज में तलब किया और मजमा-ए-आम में खड़े हो कर कहा कह इन लोगों के खिलाफ जिस शख्स को किसी ज़ुल्म के शिकायत हो वो पैश करे पुरे मजमे में सिर्फ एक शख्स उठा और उसने हजरत अमर बिन आस (रजि०) की शिकायत की कह उन्होंने नारवा तौर पर मुझे सो कोड़े लगवाए थे हजरत उमर (रजि०) ने कहा उठो और उनसे अपना बदला लो अमर बिन आस (रजि०) ने एहतेजाज किया कह आप गवर्नरों पर यह दरवाज़ा न खोलें मगर उन्होंने कहा “मैंने रसूल अल्लाह (स०) को खुद अपने आप से बदला लेते देखा है, ऐ शख्स उठ और अपना बदला ले” आखिरकर अमर बिन आस (रजि०) को हर कोड़े के बदले दो अशरफियाँ दे कर अपनी पीठ बचानी पड़ी[10]


जारी है ................. अध्याय-3- भाग - 4



[1] अल तिबरी, जि०2, सफ० 450 | इब्ने हशाम, अल सीरतुन नबूवा, जि०4,सफ०311, अल मतबतुल मुस्तफा अल बाबी, मिस्र 1936  ई० | कांजील अमाल, जि०5,अहादीस नंबर 2261,2264,2268,2278,2291,2299    

[2] इमाम अबुयुसूफ, किताबुल खराज़, सफ०117

[3] कन्जुल अमाल, जि०5,ह०2313

[4] अल तिबरी, जि०3,सफ०273

[5] अल तिबरी, जि०3,सफ०446

[6] अल तिबरी, जि०3,सफ० 550-551

[7] इब्ने कसीर जि०8, सफ० 8

[8] इब्ने कसर ,जि०8, सफ०4-5

[9] अबु युसूफ, किताबुल खराज़, सफ०115 | मुसनद अबु दाउद अल तयासी, हदीस नम्बर 55 | इब्ने अलसीर, जि०3,सफ०30| अलतिबरी, जि०3,सफ०273 

[10] अबु युसूफ, किताबुलखराज़ , सफ०116 

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