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हिंदुस्तान को लीडरों से बचाओ: मंटो

 




हिंदुस्तान को लीडरों से बचाओ

सआदत हसन ‘मंटो’


अनुवादक- फ़रीद अहमद

 

हम एक ज़माने से ये शोर सुन रहे हैं। हिन्दुस्तान को इस चीज़ से बचाओ। उस चीज़ से बचाओ, मगर हक़ीक़त ये है कि हिन्दुस्तान को उन लोगों से बचाना चाहिए जो इस तरह का शोर पैदा कर रहे हैं। ये लोग शोर पैदा करने की कला में माहिर हैं। इसमें कोई शक नहीं, मगर उनके दिल वफादारी से बिलकुल ख़ाली हैं। रात को किसी सभा में गर्मा-गर्म भाषण देने के बाद जब ये लोग अपने आरामदायक बिस्तरों में सोते हैं तो उनके दिमाग़ बिल्कुल ख़ाली होते हैं। उनकी रातों का थोड़ा सा हिस्सा भी इस ख़्याल में नहीं गुज़रा कि हिन्दुस्तान किस मर्ज़ में घिरा हुआ है। दरअसल वो अपने मर्ज़ की दावा-दारु में इस क़दर व्यस्त रहते हैं कि उन्हें अपने देश के मर्ज़ के बारे में ग़ौर करने का मौक़ा ही नहीं मिलता।

ये लोग जो अपने घरों की हालत सही नहीं कर सकते, ये लोग जिनका कैरेक्टर बेहद घटिया होता है, राजनीति के मैदान में अपने देश की व्यवस्था ठीक करने और लोगों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने के लिए निकलते हैं... कितनी हास्यास्पद बात है।

ये लोग जिन्हें समाज में लीडर कहा जाता है, राजनीती और धर्म को लंगड़ा, लूला और ज़ख़्मी आदमी माना करते हैं। जिसको दिखा कर से हमारे यहाँ पेशेवर भिकारी आम तौर पर भीक मांगते हैं। राजनीती और धर्म की लाश हमारे ये तथाकथित लीडर अपने काँधों पर उठाए फिरते हैं और सीधे-सादे लोगों को जो हर बात मान लेने के आदी होते हैं जो ऊँचे सुरों में कही जाती है। ये कहते फिर रहे हैं कि वो इस लाश को फ़िर से ज़िंदगी बख़्श रहे हैं।

धर्म जैसा था वैसा ही है और हमेशा एक जैसा रहेगा। धर्म की आत्मा एक ठोस हक़ीक़त है जो कभी बदल नहीं सकती। मज़हब एक ऐसी चट्टान है जिस पर समुंद्र की गुस्सैल लहरें भी असर नहीं कर सकतीं। ये लीडर जब आँसू बहा कर लोगों से कहते हैं कि धर्म ख़तरे में है तो इसमें कोई सच्चाई नहीं होती। धर्म ऐसी चीज़ ही नहीं कि ख़तरे में पड़ सके, अगर किसी बात का ख़तरा है तो वो लीडरों का है जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए धर्म को ख़तरे में डालते हैं।

सआदत हसन मंटो
हिन्दुस्तान को इन लीडरों से बचाओ जो देश का माहौल बिगाड़ रहे हैं और जनता को गुमराह कर रहे हैं। आप नहीं जानते मगर ये हक़ीक़त है कि हिन्दुस्तान पर ये तथाकथित लीडर अपनी-अपनी बग़ल में एक संदूकची दबाए फिरते हैं। जिसमें हर किसी की जेबें कुतर कर रुपया जमा करते हैं। उनकी ज़िंदगी एक लंबी दौड़ है। धन-दौलत के पीछे। उनकी हर साँस में आप ढोंग-पाखंड और दग़ाबाज़ी की दुर्गंध महसूस कर सकते हैं।

लम्बी-लम्बी रेलियाँ निकाल कर, कई मन के हारों के नीचे दब कर, चौराहों पर लम्बे-लम्बे भाषणों के खोखले शब्दों को फेंक कर, हमारी क़ौम के ये तथाकथित रहनुमा सिर्फ अपने लिए ऐसा रास्ता बनाते हैं जो भोग-विलास की तरफ़ जाता है।

ये लोग चंदे इकट्ठे करते हैं मगर क्या इन्होने आज तक बेकारी का हल पेश किया है...? ये लोग धर्म-धर्म चिल्लाते हैं मगर क्या इन्होंने ख़ुद कभी धर्म के शिक्षाओं का पालन किया...? ये लोग जो ख़ैरात में दिए हुए मकानों में रहते हैं, चंदों से अपना पेट पालते हैं। जो मांगी हुई चीज़ों पर जीते हैं, जिनकी आत्मा लंगड़ी, दिमाग़ अपाहिज, ज़बान लकवा ग्रस्त और हाथ-पैर सुन हैं। देश और जनता की रहबरी कैसे कर सकते हैं।

Hindustan ko leadron se bachav : Manto

हिन्दुस्तान को बेशुमार लीडरों की ज़रूरत नहीं जो नए से नया राग अलापते हैं। हमारे देश को सिर्फ़ एक लीडर की ज़रूरत है जो हज़रत उमर1 जैसी लगन रखता हो, जिसके सीने में अतातुर्क2 जैसा सिपाही जज़्बा हो। जो भूका-प्यासा आगे बढ़े और देश के बे-लगाम घोड़े के मुँह में नकेल डाल कर उसे आज़ादी के मैदान की तरफ़ साहस पूर्वक लिए जाये।

याद रखिए देश की सेवा भर-पेट लोग कभी नहीं कर सकेंगे। मोटे-मोटे पेट के साथ जो शख़्स देश की सेवा के लिए आगे बढ़े, उसे लात मार कर बाहर निकाल दीजिए। रेशमी चोलों में लिपटे हुए आदमी उनकी लीडरी नहीं कर सकते, जो नंगी ज़मीन पर सोने के आदी हैं और जिनके शरीर नर्म और नाज़ुक पोशाक से हमेशा अनजान रहे हैं, अगर कोई शख़्स रेशमी कपड़े पहन कर आपको गरीबी का समाधान बताने की कोशिश करे तो इस को उठा कर वहीं फेंक दीजिए जहाँ से निकल कर वो आप लोगों में आया था।

ये लीडर खटमल हैं जो देश की खाट में चूलों के अंदर घुसे हुए हैं। इनको नफ़रत के उबलते हुए पानी के ज़रिये बाहर निकाल देना चाहिए। ये लीडर सभाओं में पूंजी और पूंजीपतियों के ख़िलाफ़ ज़हर उगलते हैं सिर्फ़ इसलिए कि वो ख़ुद पूंजी इकट्ठा कर सकें। क्या ये पूंजीपतियों से बदतरीन नहीं ? ये चोरों के चोर हैं, रहज़नों के रहज़न। अब वक़्त गया है कि अवाम उन पर अपना अविश्वास ज़ाहिर कर दें।

ज़रूरत है कि फटी हुई क़मीजों वाले नौजवान उठें और इरादे व जूनून को अपनी चौड़ी छातियों में लिए इन तथाकथित लीडरों को इस बुलंद मुक़ाम पर से उठा कर नीचे फेंक दें। जहाँ ये हमारी इजाज़त लिए बग़ैर चढ़ बैठे हैं। उनको हमारे साथ, हम-ग़रीबों के साथ हमदर्दी का कोई अधिकार नहीं... याद रखिए गरीबी लानत नहीं है जो उसे लानत ज़ाहिर करते हैं वो ख़ुद लानती हैं। वो ग़रीब इस अमीर से लाख दर्जे बेहतर है जो अपनी कश्ती ख़ुद अपने हाथों से खेता है... अपनी कश्ती के खिवय्या ख़ुद आप बनिए... अपना नफ़ा और नुक़्सान ख़ुद आप सोचिए और फिर इन लीडरों, इन तथाकथित रहनुमाओं का तमाशा देखिए कि वो ज़िंदगी के महासागर में अपनी ज़िंदगी का भारी जहाज़ किस तरह चलाते हैं।

1मुसलमानों के दूसरे ख़लीफ़ा का नाम 2मुस्तफा कमाल पाशा की उपाधि

हिंदुस्तान को लीडरों से बचाओ: मंटो _____________________________________________


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