रसूल अल्लाह ﷺ मक्का से हज मुकम्मल कर लगभग एक लाख सहाबियों के साथ मदीना की तरफ़ लौट रहे थे। रास्ते में ‘गदीर’ नामी जगह पर आप ﷺ ने काफ़िला रुकवाया और ऊँटों की काठी से एक ऊंचा मिंबर बनाया गया।
मिंबर पर खड़े हो कर आप ﷺ ने बुलंद आवाज़ में फरमाया -
“क्या मैं तुम्हारी जानों पर तुमसे ज़्यादा हक नहीं रखता ?”
सभी सहाबा ने कहा- “या रसूल अल्लाह .... बिल्कुल, आप हमारी जानों पर हमसे ज़्यादा हक़ रखते हैं।”
फ़िर आपने मौला अली का हाथ अपने हाथ में लेकर बुलंद किया और ऐलान किया –
"मन कुंतु मौलाहु फ़हाज़ा अलीय्युन मौलाहु।" जिसका मैं मौला हूँ, अली उसका मौला है।
ऐ अल्लाह ! जो अली से मुहब्बत रखे तू उससे मुहब्बत रख और जो अली से दुश्मनी रखे तू उससे दुश्मनी रख।
हज़रत उमर आगे बढ़े और मौला अली से कहा-
“ऐ अली.... मुबारक हो ! आज से तुम मेरे और तमाम मोमीनों के मौला हो।”
अल्लाह
के रसूल ﷺ ने अपनी हयात-ए-मुबारका का वाहिद
हज, हज्जतुल-विदा अदा फ़रमाया । इस
हज में लगभग एक लाख से ज्यादा सहाबा आपके हमराह थे। यह हज सिर्फ़ इबादत नहीं,
बल्कि उम्मत के लिए एक आख़िरी वसीयत और तालीमी मरकज़ भी था।
हज से वापसी के दौरान 18 ज़िल-हिज्जा सन् 10 हिजरी को जब काफ़िला जुहफ़ा के करीब ग़दीर ख़ुम नामी
जगह पहुँचा, तो अल्लाह के रसूल ﷺ ने सबको रुकने
का हुक्म दिया। अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया कि
पीछे आने वालों का इंतेज़ार किया जाए और जो आगे बढ़ गए हैं उन्हें बुलाया जाए, ताकि
जो बात कहनी है वो सभी तक पहुँचे।
ऊँटों की काठी से एक ऊंचा मिंबर
बनाया गया। मिंबर पर खड़े हो कर अल्लाह के
रसूल ﷺ ने ख़ुत्बा दिया -
"ऐ लोगो! क़रीब है कि मुझे बुलाया जाए और मैं
उसकी दावत को कुबूल कर लूँ। मैं तुम्हारे दरमियान दो चीज़ें छोड़ रहा हूँ — अल्लाह
की किताब और मेरी अहल-ए-बैत।”
फ़िर अल्लाह के रसूल ने तमाम सहाबा
से सवाल किया -
“क्या मैं तुम्हारी जानों पर तुमसे ज़्यादा हक नहीं रखता
?”
सभी सहाबा
ने कहा-
फ़िर अल्लाह
के रसूल ने मौला अली का हाथ अपने हाथ में लेकर
बुलंद करते हुए ऐलान किया –
“मन कुंतु मौलाहु फ़हाज़ा अलीय्युन मौलाहु।”
“जिसका मैं मौला हूँ, अली उसका मौला है।”
और आपने
ﷺ आगे फ़रमाया-
ऐ अल्लाह ! जो अली से मुहब्बत
रखे तू उससे मुहब्बत रख और जो अली से दुश्मनी रखे तू उससे दुश्मनी रख।
यह ऐलान
सुनकर हज़रत उमर आगे बढ़े और मौला अली से कहा-
“ऐ अली.... मुबारक हो ! आज से तुम मेरे और तमाम मोमीनों के मौला हो।” 1
ग़दीर-ए-ख़ुम का वाक़िआ सीरत-ए-रसूल ﷺ का एक
निहायत ही नूरानी और रौशन बाब है। तमाम मोमीनों के लिये यह ख़ुशी और मुसर्रत है। इसी
लिये 18 ज़िल-हिज्जा को खुशी का दिन यानि ‘ईद-ए-ग़दीर’ मनाया जाता है। यह न सिर्फ़ मौला
अली की अज़मत का इज़हार है, बल्कि यह अहल-ए-बैत की मोहब्बत
के उस लाज़वाल रिश्ते की याददिहानी भी है जो क़ियामत तक अहल-ए-ईमान के दिलों में
ज़िंदा रहना चाहिए। रसूल अल्लाह ﷺ ने यह ऐलान खुले आसमान तले, हज़ारों सहाबा
की मौजूदगी में फ़रमाया ताकि उम्मत पर हुज्जत तमाम हो जाए। यह वाक़िआ हमें दावत
देता है कि हम रसूलुल्लाह ﷺ के बाद उन हस्तियों की इज़्ज़त और
एहतिराम करें जिन्हें रसूल अल्लाह ने ख़ुद बुलंद फ़रमाया, जिन्हें उम्मत
के सामने मक़ाम अता फ़रमाया।
18 ज़िल-हिज्जा (ईद-ए-ग़दीर) और हज़रत उस्मान की शहादत
इस्लामी तारीख़ में 18 ज़िल-हिज्जा
एक अहम दिन है। यही वो दिन है जब रसूल अल्लाह ﷺ ने अपने आख़िरी हज से वापसी के
दौरान ग़दीर ख़ुम नामी जगह पर एक अहम एलान फ़रमाया — जिसे
"वाक़िआ-ए-ग़दीर" कहा जाता है। इसी दिन को "ईद-ए-ग़दीर" के
तौर पर मनाया जाता है। वहीं दूसरी तरफ़, इस्लामी इतिहास की किताबों में यह भी
दर्ज है कि इसी तारीख़ 18 ज़िल-हिज्जा 35 हिजरी को ख़लीफ़ा-ए-रसूल हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान को शहीद कर दिया गया।
इसी नज़रिए के तहत अहल-ए-सुन्नत के बहुत से आलिम व मुक़र्रीर 18 ज़िल-हिज्जा को ख़ुशी मनाने व ईद-ए-ग़दीर को जायज़ नहीं समझते हैं।
जबकि अहल-ए-सुन्नत की इतिहास की
किताबों में हज़रत उस्मान की शहादत की कई तारीख़ें मिलती हैं। जिनमें 18 ज़िल-हिज्जा
के साथ-साथ 9 ज़िल-हिज्जा से लेकर 13 ज़िल-हिज्जा तक की तारीख़ को हज़रत उस्मान की शहादत
की तारीख़ माना है। जिसमें मुहम्मद बिन साद (230 हिजरी), इब्न अबी शैबा (235 हिजरी),
इमाम अहमद बिन हम्बल (241 हिजरी), अबु नईम अल-इस्फ़हानी (336 हिजरी), तिबरानी (360 हिजरी), इब्न अब्दुल बर्र कुर्तबी
(463 हिजरी), इब्न असाकिर (571 हिजरी), इब्न अल-जौज़ी (597 हिजरी), इब्न कसीर (774 हिजरी)
और जलालउद्दीन सियूती (911 हिजरी) जैसे ज़लील उल क़द्र मुहद्दिसीन और मुआर्रिख़ीन
शामिल हैं। जिन्होंने अपनी किताबों में हज़रत उस्मान की शहादत को अय्याम-ए-तशरीक़ यानि
9 से 13 ज़िल-हिज्जा 35 हिजरी दर्ज किया है।2
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फ़रीद अहमद |
1
·
सही मुस्लिम- 6225,6226,6227,6228
·
मुसनद अहमद बिन हम्बल- 18671,19540
· सुनन-तिर्मिज़ी- 3713
·
मिश्कात अल-मसाबीह- 6103,6140,6088
2
·
मुहम्मद बिन साद, तबक़ात इब्न साद, जिल्द
2 सफ़्हा 147
·
इब्न आबी शैबा, अल-मुसन्निफ़, सफ़्हा
328
·
इमाम अहमद बिन हम्बल, मुस्नद अहमद, हदीस 546
·
अबु नईम अल-इस्फ़हानी, मआर्फतुल
सहाबा, सफ़्हा 65
·
तिबरानी, अल- मुअजमुल कबीर, जिल्द 1 सफ़्हा 77
·
इब्न अब्दुल बर्र कुर्तबी,
अल-इस्तियाब, सफहा 507
·
इब्न असाकिर, तारिख-ए-मदीना व
दमिश्क़, सफहा 513
·
इब्न अल-जौज़ी, असद उल गअबा सफ़्हा
585
·
इब्न कसीर, अल बिदाया वन निहाया,
जिल्द 7 सफ़्हा 212
· जलालउद्दीन
सीयूती, तारिख़-ए-खुल्फ़ा, सफ़्हा 163
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