सामाजिक परिवर्तन
अर्थ एवं परिभाषा
-फ़रीद अहमद
परिवर्तन प्रकृति का अटल नियम है । जैसे नियम वर्तमान में
हैं, आवश्य ही वैसे नियम भविष्य तथा भूत काल से भिन्न हैं । वस्तु: इंसान, प्रकृति
व समाज सभी परिवर्तनशील हैं । संसार में कुछ भी स्थिर नहीं है, समस्त पदार्थों में
कुछ ना कुछ परिवर्तन आवश्यक रूप से सदैव होते रहते हैं। किसी भी देश, प्रान्त,
प्रदेश इत्यादि का इतिहास कभी एक जैसा नहीं रहा, समय समय पर नई- नई सरकारें,
प्रशासक, विचारधाराओं, को अपनाया जाता रहा है । देश , प्रान्त तथा प्रदेश इत्यादि
में राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक , व्यवहारिक इत्यादि परिवर्तन होते रहे
हैं । रुढ़िवादी विचारधाराएं, परम्पराएं, रीति-रिवाज, प्रथाएं, रहन-सहन, तौर-तरीके,
आपसी सम्बन्ध, शिक्षा , स्वास्थ , मनोरंजन , संस्थाओं, समितियों, समूहों, संस्कृति
, परिवार, विवाह, नातेदारी , व्यापार, इत्यादि में निरंतर बदलाव और परिवर्तन देखा
जा सकता है ।
‘परिवर्तन’
(Change) तथा ‘सामाजिक परिवर्तन’ (Social Change) एक जैसे परिवर्तन नहीं हैं । ‘परिवर्तन’
के साथ ‘सामाजिक’ शब्द के जुड़ जाने से इस की सीमाएं निर्धारित कर दी जाती हैं ।
‘परिवर्तन’ समस्त, सम्पूर्णता का द्योतक है तो ‘सामाजिक परिवर्तन’ उस असीम और
सम्पूर्ण परिवर्तन का एक भाग है । समस्त परिवर्तनों जैसे भौतिक , जैविक , ओद्यौगिक
क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तन को ‘सामाजिक परिवर्तन’ की श्रेणी में नहीं रखा
जा सकता, ‘सामजिक परिवर्तन’ से तात्पर्य समाज में होने वाले परिवर्तन से हैं ।
‘सामाजिक
परिवर्तन’ सार्वभौमिक तथा निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है , जो कि संसार के समस्त समाजों में हमेशा
क्रियाशील रही हैं । ‘सामाजिक परिवर्तन’ समाजशास्त्र की केन्द्रीय अवधारणा है, जिसके
द्वारा समाज की गत्यात्मकता को समझने का प्रयास किया जाता है ।
सामाजिक
परिवर्तन की परिभाषाएं
सर्वप्रथम आगस्ट कॉम्ट
ने सामाजिक परिवर्तन का उल्लेख किया परन्तु आगस्ट कॉम्ट ने इसे ‘सामाजिक गतिकी’
(Social dynamics) कहा । लेकिन कार्ल मार्क्स को सामाजिक परिवर्तन का समाजशास्त्री
माना जाता है ।
मैकाइवर तथा पेज (R.M. MacIver and C.H. Page) “सामाजिक परिवर्तन का अर्थ सामाजिक संबंधों में होने वाले परिवर्तन से हैं उन
रीति-रिवाजों , तरीकों में होने वाले परिवर्तन जिसके द्वारा व्यक्ति आपस में
सम्बंधित होते हैं ।” [i]
किंग्सले डेविस (Kingsley
Davis) - “ सामाजिक परिवर्तन से केवल उन अंतरों का बोध होता है जो कि सामाजिक संगठन
में घटित होते हैं।
अर्थात समाज की संरचना तथा प्रकार्यों में घटित होते हैं । इस प्रकार हम सामाजिक परिवर्तन
को सांस्कृतिक परिवर्तन का केवल एक अंश मात्र ही कह सकते हैं । सांस्कृतिक
परिवर्तन में तो वह सभी परिवर्तन आ जाते हैं जो कि संस्कृति की किसी भी शाखा में
घटित होते हैं । जैसे- कला, विज्ञान, तकनीकी, दर्शन इत्यादि । इसमें हम परिवर्तन
को भी सम्मिलित करते हैं जो सामाजिक संगठन के स्वरूपों तथा नियमों में आते हैं ।”[ii]
फेयरचाइल्ड (Fairchild) सामाजिक परिवर्तन
सामाजिक प्रक्रिया , प्रतिमान अथवा स्वरूप के किसी भी पहलू में होने वाले अंतर या
संशोधन से है । यह एक व्यापक शब्द है जिससे सामाजिक आन्दोलन के प्रत्येक प्रकार के
परिणामों का बोध होता है । सामाजिक परिवर्तन प्रगतिगामी या प्रतिगामी , स्थाई अथवा
अस्थाई , नियोजित अथवा अनियोजित , एक दिशागामी या बहु- दिशागामी , उपयोगी अथवा
हानिकारक हो सकते हैं ।” [iii]
वान वीज (Von Wiese) “सामाजिक परिवर्तन से अभिप्राय केवल मनुष्य- मनुष्य के संबन्धिन में होने
वाले परिवर्तन से है । जबकि सांस्कृतिक परिवर्तन से मनुष्य तथा पदार्थ के बीच पाए
जाने वाले संबंधों में परिवर्तन का बोध
होता है । संस्कृति तो अंर्तमानवीय क्रियाओं के प्रतिफलों की ओर संकेत करती हैं ।
जबकि समाज स्वयं इन प्रतिफलों को उत्पन्न करने वाले मानवों से प्रयोजन रखता है ।” [iv]
गिलिन तथा गिलिन (Gillin and Gillin) “ सामाजिक
परिवर्तन का अर्थ जीवन की स्वीकृत विधियों में होने वाले परिवर्तन से हैं , चाहे
वह परिवर्तन भौगोलिक दशाओं के कारण हों , सांस्कृतिक उपकरणों में जनसंख्या के रूप तथा
विभिन्न सिद्धांतों के कारण हो, अथवा एक समूह में आविष्कार या संस्कृति के प्रसार
से उत्पन्न हुए हों ।”[v]
विल्बर्ट ई० मूर (Wilbert E. Moore) “ सामाजिक संरचना में होने वाले
महत्वपूर्ण परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन की श्रेणी में आयेंगे । महत्वपूर्ण
परिवर्तनों में इनका अभिप्राय सामाजिक क्रियाओं तथा अंत: क्रियाओं के प्रतिमानों
में होने वाले परिवर्तनों से है । ” [vi]
एल्विन बोस्काफ (Alvin Boskoff) “ सामाजिक
परिवर्तन एक ऐसी बोधगम्य प्रक्रिया है जिसके द्वारा निश्चित सामाजिक व्यवस्थाओं की
संरचना तथा कार्यप्रणाली में होने वाले महत्वपूर्ण अंतरों का बोध किया जा सकता है।”
[vii]
एच० एम० जॉनसन (H.M. Johnson) “ सामाजिक परिवर्तन किसी सामाजिक व्यवस्था में
होना वाला परिवर्तन हैं । जो स्थिर अथवा अपेक्षा तथा परिवर्तनीय था
वह परिवर्तित हो जाता है । इसके
अतिरिक्त संरचात्मक परिवर्तनों में सबसे महत्वपूर्ण वह परिवर्तन है जिसका व्यवथा
की कार्य प्रणाली पर प्रभाव पड़ता हो अर्थात इसके लक्ष्य को और अधिक कुशलता पूर्वक
प्राप्त किया जा सकता हो जो व्यवस्था के अस्तित्व को बनाए रखने में आवश्यक हो। ”
एड्रिज तथा मेरिल – “मानव क्रियाओं में होने वाले परिवर्तन अथवा जब मानव व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया में होता है तो
हम उसी को सामाजिक परिवर्तन कहते हैं । ”
समनर तथा केलर - समानर तथा केलर के अनुसार-“सामाजिक परिवर्तन आर्थिक तत्वों द्वारा अपने आप ही
निर्धारित होता है ।”[viii]
फ्रांसिस ऐलन- सामाजिक
परिवर्तन में कुछ काल की अवधि में सामाजिक अवस्थाओं अथवा उप-व्यवस्थाओं, संरचना, प्रकार्य
या प्रक्रिया में होने वाले परिवर्तन शामिल होते हैं ।”[ix]
उपरोक्त सामाजिक परिवर्तन कि परिभाषाओं के आधार पर यह कहा
जा सकता है कि परिवर्तन एक व्यापक प्रक्रिया है । सामाजिक संस्थाओं, नियमों ,
सामाजिक मूल्यों, कार्य विधियों तथा विचारों का परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन का मूल
आधार है ।
[i] समाजशास्त्र, MT सीरीज, मास्टर पब्लिकेशन, मेरठ 2018,
पृष्ठ-65
[ii] रामनाथ
शर्मा,राजेन्द्र कुमार शर्मा,सामाजिक परिवर्तन और सामाजिक नियंत्रण ,अटलांटिक
पब्लिकेशन नई दिल्ली,2003, पृष्ठ-11
[iii] रामनाथ शर्मा,राजेन्द्र कुमार शर्मा,सामाजिक परिवर्तन और
सामाजिक नियंत्रण ,अटलांटिक पब्लिकेशन नई दिल्ली,2003, पृष्ठ-10
[iv] समाजशास्त्र, MT सीरीज, मास्टर पब्लिकेशन, मेरठ 2018,
पृष्ठ-65
[v] रामनाथ शर्मा,राजेन्द्र कुमार शर्मा,सामाजिक परिवर्तन और
सामाजिक नियंत्रण ,अटलांटिक पब्लिकेशन नई दिल्ली,2003, पृष्ठ-12
[vi] रामनाथ शर्मा,राजेन्द्र कुमार शर्मा,सामाजिक परिवर्तन और
सामाजिक नियंत्रण ,अटलांटिक पब्लिकेशन नई दिल्ली,2003, पृष्ठ-10
[vii] रामनाथ शर्मा,राजेन्द्र कुमार शर्मा,सामाजिक परिवर्तन और
सामाजिक नियंत्रण ,अटलांटिक पब्लिकेशन नई दिल्ली,2003, पृष्ठ-10
[viii] एस के ओझा,यू जी सी नेट/जे आर एफ समाजशास्त्र, अरिहंत
पब्लिकेशन, मेरठ,पृष्ठ-29
[ix] समाजशास्त्र, MT सीरीज, मास्टर पब्लिकेशन, मेरठ 2018,
पृष्ठ-65
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